الفتوحات المكية

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﴿بِيَدِهِ مَلَكُوتُ كُلِّ شَيْءٍ﴾ [المؤمنون:88] فالناس في واد و العلماء بالله في واد و أما التفاضل الظاهر في العالم فمجهول عند بعض الناس و معلوم عند بعضهم و منهم المخطئ فيه و المصيب و ذلك أن العالم قسمه اللّٰه في الوجود بين غيب و شهادة و ظاهر و باطن و أول و آخر فجعل الباطن و الآخر و الغيب نمطا واحدا و جعل الأول و الظاهر و الشهادة نمطا آخر فمن الناس من فضل النمط الذي فيه الأولية و من الناس من فضل النمط الذي فيه الآخرية و من الناس من سوى مطلقا و من الناس من قيد و هم أهل اللّٰه خاصة فقالوا النمط الذي فيه الآخرية في حق السعداء خير و في حق الأشقياء ما هو خير و إن أهل اللّٰه تعلقهم بالمستقبل أولى من تعلقهم بالماضي فإن الماضي و الحال قد حصلا و المستقبل آت فلا بد منه فتعلق الهمة به أولى فإنه إذا ورد عن همة متعلقة به كان لها لا عليها و إذا ورد عن غير همة متعلقة به كان إما لها و إما عليها و إنما أثر فيه تعلق الهمة أن يكون لها لا عليها لما يتعلق من صاحب الهمة من حسن الظن بالآتي و الهمم مؤثرة فلو كان إتيانه عليه لا له لعاد بالهمة له لا عليه و هذه فائدة من حافظ عليها حاز كل نعيم فإذا ورد الآتي على ذي همة متعلقة بإتيانه بادر إلى الكرامة به و التأدب معه على بصيرة و سكون و حسن تأن في ذلك بخلاف من يفجأه الآتي فيدهش و يحار في كيفية تلقيه و معاملته و هو سريع الزوال فربما فارق الحال و مضى و ما قام صاحب الدهش بحقه و بما يجب عليه من الأدب معه بخلاف المستعد غير إن المستعد للآتي لا بد إن كان كاملا إن يحفظ الماضي فإنه إن لم يحفظه فاته خيره و قد جعل اللّٰه في العبد من خزائن الجود خزانة الحفظ فيكون عليه جعله في تلك الخزانة فهو صاحب حال في الحال و في الماضي فما يبقى له إلا الآتي مع الأنفاس فلا تزال القوة الحافظة على باب خزانة الحفظ تمنع إن يخرج منها ما اختزنته فيها و تأخذ ما فارق الحال فتخزنه فيها و لهذه القوة الحافظة سادنان الواحد الذكر و قد وكلته بحفظ المعاني المجردة عن المواد و السادن الآخر الخيال و قد وكلته بحفظ المثل في تلك الخزانة و بقيت هي مشتغلة بقبول ما يأتي إليها عند مفارقة زمان الحال و حكم الزمان الماضي على هذا الآتي فتأخذه فتلقيه في الخزانة خزانة الحفظ و إنما سميت خزانة الحفظ لأنها تحفظ على الآتي زمان الحال و هو الدائم فلا يحكم عليه الزمان الماضي بخلاف من ليس له هذا الاستعداد و لا هذا التهيؤ فإن الماضي يأخذه فينساه العبد فلا يدري أين ذهب و هو الذي يستولي عليه سلطان الغفلة و السهو و النسيان فيكون الحق يحفظه له أو عليه و العبد لا يشعر لهذا الحفظ الإلهي بل أكثر العبيد لا كلهم و هو قوله ﴿فَمَنْ يَعْمَلْ مِثْقٰالَ ذَرَّةٍ خَيْراً يَرَهُ وَ مَنْ يَعْمَلْ مِثْقٰالَ ذَرَّةٍ شَرًّا يَرَهُ﴾



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