الفتوحات المكية

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جديد الناس منه في لبس فالله خالق دائما و العالم في افتقار دائم له في حفظ وجوده بتجديده فالعالم معقول لذاته موجود بالله تعالى فحدوده النفسية عينه و هذا هو الذي دعا الحسبانية إلى القول بتجديد أعيان العالم في كل زمان فرد دائما و ذهلت عن معقولية العالم من حيث ما هو محدود و هو أمر وهمي لا وجود له إلا بالوهم و هو القابل لهذه المعاني و في العلم ما هو غير جميع هذه المعاني فصار محسوسا أمر هو في نفسه مجموع معقولات فأشكل تصوره و صعب على من غلب عليه وهمه فحار بين علمه و وهمه و هو موضع حيرة و قالت طائفة بتجدد الأعراض على الجوهر و الجوهر ثابت الوجود و إن كان لا بقاء له إلا بالعرض و ما تفطن صاحب هذا القول لما هو منكر له فغاب عنه شيء فجهله و ظهر له شيء فعلمه و قالت طائفة أخرى بتجدد بعض الأعراض و هي المسماة عندهم أعراضا و ما عداها و إن كانت في الحقيقة على ما يعطيه العلم أعراضا فيسمونها صفات لازمة كصفرة الذهب و سواد الزنجي و هذا كله في حق من يثبتها أعيانا وجودية و ثم من يقول إن ذلك كله نسب لا وجود لها إلا في عين المدرك لها لا وجود لها في عينها و إلى هذا ذهب القاضي أبو بكر بن الطيب الباقلاني على ما وصل إلينا و العهدة على الناقل و أهل الكشف لهم الاطلاع على جميع المذاهب كلها و النحل و الملل و المقالات في اللّٰه اطلاعا عاما لا يجهلون منه شيئا فما تظهر نحلة من منتحل و لا ملة بناموس خاص تكون عليه و لا مقالة في اللّٰه أو في كون من الأكوان ما تناقض منها و ما اختلف و ما تماثل إلا و يعلم صاحب الكشف من أين أخذت هذه المقالة أو الملة أو النحلة فينسبها إلى موضعها و يقيم عذر القائل بها و لا يخطئه و لا يجعل قوله عبثا فإن اللّٰه ما خلق سماء و لا أرضا و ما بينهما باطلا و لا خلق الإنسان عبثا بل خلقه ليكون وحده على صورته فكل من في العالم جاهل بالكل عالم بالبعض إلا الإنسان الكامل وحده فإن اللّٰه علمه الأسماء كلها و آتاه جوامع الكلم فكملت صورته فجمع بين صورة الحق و صورة العالم فكان برزخا بين الحق و العالم مرآة منصوبة يرى الحق صورته في مرآة الإنسان و يرى الخلق أيضا صورته فيه فمن حصل في هذه المرتبة حصل رتبة الكمال الذي لا أكمل منه في الإمكان و معنى رؤية صورة الحق فيه إطلاق جميع الأسماء الإلهية عليه كما جاء في الخبر فبهم تنصرون و اللّٰه الناصر و بهم ترزقون و اللّٰه الرازق و بهم ترحمون و اللّٰه الراحم و قد ورد في القرآن فيمن علمنا كماله و اعتقدنا ذلك فيه أنه



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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