الفتوحات المكية

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[أن أفضل ما جاد به اللّٰه تعالى على عباده العلم]

و اعلم أن أفضل ما جاد به اللّٰه تعالى على عباده العلم فمن أعطاه اللّٰه العلم فقد منحه أشرف الصفات و أعظم الهبات و العلم و إن كان شريفا بالذات فإن له شرفا آخر يرجع إليه من معلومه فإنها صفة عامة التعلق و تشرف المفاتيح بشرف الخزائن و تشرف الخزائن بقدر شرف ما اختزن فيها فالموجود الحق أعظم الموجودات و أجلها و أشرفها فالعلم به أشرف العلوم و أعظمها و أجلها ثم ينزل الأمر في الشرف إلى آخر معلوم و ما من شيء إلا و العلم به أحسن من الجهل به فالعلم شرفه ذاتي له و الشرف الآخر مكتسب و الخزائن محصورة بانحصار أنواع المعلومات و مرجعها و إن كثرت إلى خزانتين خزانة العلم بالله و خزانة العلم بالعالم و في كل خزانة من هاتين الخزانتين خزائن كالعلم بالله من حيث ذاته بالإدراك العقلي و من حيث ذاته بالإدراك الشرعي السمعي و العلم به من حيث أسماؤه و العلم به من حيث نعوته و العلم به من حيث صفاته و العلم به من حيث النسب إليه و كل ذلك من حيث النظر الفكري و من حيث السمع و هو من حيث السمع كما هو من حيث الكشف و الخزانة الأخرى التي هي العلم بالعالم تحوي على خزائن و في كل خزانة خزائن فالخزائن الأول العلم بأعيان العالم من حيث إمكانه و من حيث وجوبه و من حيث ذواته القائمة بأنفسها و من حيث أكوانه و من حيث ألوانه و من حيث مراتبه و من حيث مكانه و زمانه و نسبه و عدده و وضعه و تأثيره و كونه مؤثرا فيه منه و من غيره إلى أمثال هذا من العلوم و علم الدنيا و البرزخ و الآخرة و الملإ الأعلى و الأدنى فأول مفتاح من هذه الخزائن أعطاه العالم بالله مفتاح خزانة العلم بالوجود مطلقا من غير تقييد بحادث و لا قديم و بما ذا تميز هل بنفسه أو بغيره و هو العدم فالوجود ظهور الموجود في عينه فإن به تظهر جميع الأحكام من نفي و إثبات و وجوب و إمكان و إحالة و وجود و عدم و لا وجود و لا عدم هذا كله لا يثبت و لا يصح إلا من موجود يكون عينه و ماهيته و وجوده لا يقبل التكثر إلا بحكمه عليه فإن الحقائق التي تبرز إليه فيه لوجوده فنقول بالكثرة في عينه و هو واحد و لكل حقيقة اسم فله أسماء



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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