الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

و لأنت تفري ما خلقت و *** بعض الناس يخلق ثم لا يفري

و كالإسكاف و أمثاله من صائغ و خياط و حداد و أمثال ذلك يريد أن يقطع من جلد نعلا فيأخذ نعلا فيقدره على الجلد فإذا أخذ قدرة من الجلد قطع من الجلد ذلك المقدار و فصله منه و الظلالات أوجدها اللّٰه على مثال الأشخاص و لما أراد فصلها مدها فظهرت أعيانها على صورة من هي ظله حذوك النعل بالنعل فلما خلق اللّٰه العالم دون الإنسان أي دون مجموعه حذا صورته على صورة العالم كله فما في العالم جزء إلا و هو على صورة الإنسان و أريد بالعالم كل ما سوى اللّٰه ففصله عن العالم بعد ما دبره و هو عين الأمر المدبر ثم إنه تعالى حذاه حذوا معنويا على حضرة الأسماء الإلهية فظهرت فيه ظهور الصور في المرآة للرائي ثم فصله عن حضرة الأسماء الإلهية بعد ما حصلت فيه قواها فظهر بها في روحه و باطنه فظاهر الإنسان خلق و باطنه حق و هذا هو الإنسان الكامل المطلوب و ما عدا هذا فهو الإنسان الحيواني و رتبة الإنسان الحيواني من الإنسان الكامل رتبة خلق النسناس من الإنسان الحيواني هذا جملة الأمر في خلق الإنسان الكامل من غير تفصيل و أما تفصيل خلقه فاعلم إن اللّٰه لما خلق الأركان الأربعة دون الفلك و أدارها على شكل الفلك و الكل أشكال في الجسم الكل فأول حركة فلكية ظهر أثرها فيما يليها من الأركان و هو النار فأثر فيه اشتعالا بما في الهواء من الرطوبة فكان ذلك الاشتعال و اللهب من النار و الهواء و هو المارج أي المختلط و منه سمي المرج مرجا لأنه يحوي على أخلاط من الأزهار و النبات و منه وقع الناس في هرج أي قتل و مرج أي اختلاط ففتح اللّٰه في تلك الشعلة الجان ثم أفاضت الكواكب النيرة بأمر اللّٰه و إذنه فإنه



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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