الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

إنه الفرار من الجهل إلى العلم و أن الأمر واحد أحدي و أن الذي كان يتوهمه أمرا وجوديا من نسبة الألوهة لهذا الذي اتخذه إلها محال عدمي لا ممكن و لا واجب فهذا معنى الفرار المأمور به فإليه من حيث نسبة الألوهة إليه يكون الفرار فافهم و أما الفرار الثاني المتلو فقوله عن موسى ع ﴿فَفَرَرْتُ مِنْكُمْ لَمّٰا خِفْتُكُمْ﴾ [الشعراء:21] لما علم إن اللّٰه وضع الأسباب و جعل لها أثرا في العالم بما يوافق الأغراض و بما لا يوافقها و بما يلائم الطبع و بما لا يلائمه و خلق الحيوان على مزاج يقبل به الألم و اللذة بخلاف النبات و الجماد فإنهما و إن اتصفا بالحياة عند أهل الكشف فإنهما على مزاج لا يقبل اللذة و الألم و وقع من موسى عليه السّلام ما وقع من قتل القبطي ففر إلى النجاة التي يمكن أن تحصل له بالفرار فرأى إن الفرار من الأسباب الإلهية الموضوعة في بعض المواطن لوجود النجاة فهو فرار طبيعي لأنه ذكر أن الخوف من السبب جعله يفر لكنه معرى عن التعريف بما ذكرناه من الوضع الإلهي فلم يوف النظر العقلي حقه فإن هذا كان قبل نبوته و معرفته بما يريده الحق به فلما فر خوفا من فرعون تلقاه الحق بالنجاة و جمع بينه و بين رسول من رسله و هو شعيب عليه السّلام ثم أعطاه النبوة و الحكم الذي خاطب اللّٰه به القبط و بنى إسرائيل إن يكونوا عليه و أرسله بذلك إلى من خاف منه فكان ذلك الإرسال كالعقوبة لما لحقه من الخوف من السبب الموضوع و لم يوف السبب الموضوع حقه أعني النظر العقلي فكان ينبهه في الفرار أنه خوف من اللّٰه إذ لا قدرة مؤثرة للممكن في إيصال خير أو شر إلى ممكن آخر و إن ذلك كله بيد اللّٰه فجاءه بالرسالة و الحكم من عند اللّٰه و أمنه بما أعطاه اللّٰه من العلم بما يؤول إليه أمره مع فرعون و آله و أراه إذ كلمه ما أراه من قلب العصا حية و إنما قلنا عقوبة كان ذلك الإرسال إلى فرعون و إن الخوف معه باق منه لقوله تعالى له و لأخيه حين قالا ﴿إِنَّنٰا نَخٰافُ أَنْ يَفْرُطَ عَلَيْنٰا أَوْ أَنْ يَطْغىٰ﴾ [ طه:45]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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