الفتوحات المكية

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أي قدرتك أي ما كانت لك شيئية الوجود و هي على الحقيقة شيئية الظهور ظهور لعينه و إن كان في شيئية ثبوته ظاهرا متميزا عن غيره بحقيقته و لكن لربه لا لنفسه فما ظهر لنفسه إلا بعد تعلق الأمر الإلهي من قوله كن بظهوره فاكتسب ظهوره لنفسه فعرف نفسه و شاهد عينه فاستحال من شيئية ثبوته إلى شيئية وجوده و إن شئت قلت استحال في نفسه من كونه لم يكن ظاهرا لنفسه إلى حالة ظهر بها لنفسه بتقدير العزيز العليم فالعالم كله طالع غارب و فلك دائر و نجم سابح ظاهر بين طلوع و غروب عن وحي إلهي و هو ما يتوجه عليه من أمر بظهور و خفاء و وحي نفسي و هو ما يطلبه منه الحق و ما يطلب من الحق تعالى فيوحي إلى الحق كما أوحى الحق إليه فيعمل الحق بما أوحى إليه عبده وقتا و قد لا يعمل وقتا كما إن العبد إذا أوحى الحق إليه فأمره بشيء يعمله أو يتركه فيطيعه وقتا و يعصيه وقتا فظهر الحق للمكلف بصورته في العطاء و الإباية فما رأى العبد في الحق إلا صورته فلا يلومن إلا نفسه إذا دعا الحق في أمر فلم يجبه أ لا ترى إلى الملائكة لما لم يعصوا اللّٰه تعالى فيما دعاهم إليه من فعل كما أخبر عنهم ما دعوه في شيء إلا أجابهم لأنهم ليسوا على صورة منع مما دعاهم الحق إليه و العالم لا يشهد من الحق إلا صورة ما هو عليه و «لذلك قال ﷺ فيمن يقول آمين بعد قراءة الفاتحة من وافق تأمينه تأمين الملائكة غفر له» لأن تأمين الملائكة مقبول عند اللّٰه مجاب فوافق زمان الإجابة للملائكة فحصلت له الإجابة بحكم التبعية إلا أن يكون وقته وقت إجابة له جزاء لما امتثل من أمر الحق في وقت ما و الأصل في العالم قبول الأمر الإلهي في التكوين و العصيان أمر عارض عرض له نسبي و في الحقيقة ما عصى اللّٰه أحد و لا أطاعه بل الأمر كله لله و هو قوله



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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