الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

فإذا فهمت القيامة الجزئية بموت هذا الشخص المعين علمت القيامة العامة لكل ميت كان عليها فإن مدة البرزخ هي للنشأة الآخرة بمنزلة حمل المرأة الجنين في بطنها ينشئه اللّٰه نشأ بعد نشء فتختلف عليه أطوار النشء إلى أن يولد يوم القيامة فلهذا قيل في الميت إنه إذا مات فقد قامت قيامته أي ابتدأ فيه ظهور نشأة الأخرى في البرزخ إلى يوم البعث من البرزخ كما يبعث من البطن إلى الأرض بالولادة فتدبير نشأة بدنه في الأرض زمان كونه في البرزخ ليسويه و يعدله على غير مثال سبق مما ينبغي للدار الآخرة فيعبده فيها أعني في أرض نشأته الأخراوية عبادة ذاتية لا عبادة تكليف فإن الكشف يمنعه إن يكون عبدا لغير من يستحق أن يكون له عبدا كما ينال هذا المقام رجال اللّٰه هنا و لما خلق اللّٰه أرض بدنك جعل فيها كعبة و هو قلبك و جعل هذا البيت القلبي أشرف البيوت في المؤمن فأخبر إن السموات و فيها البيت المعمور و الأرض و فيها الكعبة ما وسعته و ضاقت عنه و وسعه هذا القلب من هذه النشأة الإنسانية المؤمنة و المراد هنا بالسعة العلم بالله سبحانه فهذا يدلك على أنها الأرض الواسعة و أنها أرض عبادتك فتعبده كأنك تراه من حيث بصرك لأن قلبك محجوب أن يدركه بصرك فإنه في الباطن منك فتعبد اللّٰه كأنك تراه في ذاتك كما يليق بجلاله و عين بصيرتك تشهده فإنه ظاهر لها ظهور علم فتراه بعين بصيرتك و كأنك تراه من حيث بصرك فتجمع في عبادتك بين الصورتين بين ما يستحقه تعالى من العبادة في الخيال و بين ما يستحقه من العبادة في غير موطن الخيال فتعبده مطلقا و مقيدا و ليس ذلك لغير هذه النشأة فلهذا جعل هذه النشأة المؤمنة حرمه المحرم و بيته المعظم المكرم و قد أشرت إلى هذا المعنى بقولي

من كان حقا كله *** قد زال عنه كله



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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