الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

فإن الممكن الوجهان فيه على السواء فما أوجده اللّٰه إلا بالترجيح ثم إن اللّٰه ذكر عن نفسه ما كان عليه و لا عالم فذكر عن نفسه أنه أحب أن يعرف فرجح جانب المعرفة به على مقابله فخلق العالم بالترجيح لجانب العلم على مقابله فلما وازن اللّٰه بين الرحمة و الغضب رجحت الرحمة و ثقلت و ارتفع الغضب الإلهي و لا معنى لارتفاع الشيء إلا زوال حكمه فلم يبق للغضب الإلهي حكم في المال فإنه في المال وقع ترجيح الرحمة و ارتفاع الغضب لخفته فما ظهر حكم الغصب إلا في حال وضع الغضب و الرحمة في الميزان فحكم كل واحد منهما في العالم إلى أن يظهر الترجيح فيرتفع حكم الغضب و ما قلنا هذا إلا ردا لما قاله من يدعي الكشف فقال في الموازنة الإلهية إن اللّٰه لا يحكم عدله في فضله و لا فضله في عدله و إن القبضتين على السواء من جميع الوجوه و هذا من أعظم الغلط الذي يطرأ على أهل الكشف لعدم الأستاذ و ما يقول هذا إلا من لم يكن بين يدي أستاذ قد رباه أستاذ متشرع عارف بموارد الأحكام الشرعية و مصادرها فإن اللّٰه ما نصب طريقا إلى معرفته التي لا يستقل العقل بإدراكها من حيث فكره إلا ما شرعه لعباده على ألسنة رسله و أنبيائه و إنما قلنا هذا لما علمنا إن ثم طريقا آخر يقتضيه الوجود و يحصله بعض النفوس الفاضلة فأردنا إن نرفع الإشكال و ذلك أن النفوس تصفو بالرياضة و ترك الشهوات الطبيعية و الاستغراق في الأمور المحسوسة و تتشوق إلى ما منه جاءت و ما أريدت له و إلى أين ما لها و ما مرتبتها من العالم و علمت من ذاتها إن وراء هذا الجسم أمرا آخر هو المحرك له و المدبر لما عاينت من الموت النازل به فتنظر إلى آلاته على كمالها و لا ترى له تلك الإدراكات التي كانت له في زمان وصفه بالحياة فعلمت أنه لا بد من أمر آخر هناك لا تعرف ما نسبته إلى هذا الجسم هل نسبة العرض إلى محله أو المتمكن إلى مكانه أو الملك إلى ملكه



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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