الفتوحات المكية

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و اعلم أن اللّٰه من هذا المنزل يقبل التجلي في الصور الطبيعية كثيفها و لطيفها و شفافها لأهل البرازخ و القيامة برزخ و ما في الوجود غير البرازخ لأنه منتظم شيء بين شيئين مثل زمان الحال و يسمى الدائم و الأشياء المعنوية دور و الحسية أكر فما في الكون طرف لأن الدائرة لا طرف لها فكل جزء منها برزخ بين جزأين و هذا علم شريف لمن عرفه و لهذا جمع في الإنسان الكامل بين الصورتين الطبيعيتين في نشأته فخلقه بجسم مظلم كثيف و بجسم لطيف محمول في هذا الجسم الكثيف سماه روحا له به كان حيوانا و هو البخار الخارج من تجويف القلب المنتشر في أجزاء البدن المعطي فيه النمو و الإحساس و خصه دون العالم كله بالقوة المفكرة التي بها يدبر الأمور و يفصلها و ليس لغيره من العالم ذلك فإنه على الصورة الإلهية و من صورتها يدبر الأمر يفصل الآيات فالإنسان الكامل من تممت له الصورة الإلهية و لا يكمل إلا بالمرتبة و من نزل عنها فعنده من الصورة بقدر ما عنده أ لا ترى الحيوان يسمع و يبصر و يدرك الروائح و الطعوم و الحار و البارد و لا يقال فيه إنسان بل هو جمل و فرس و طائر و غير ذلك فلو كملت فيه الصورة قيل فيه إنسان كذلك الإنسان لا يكمل فيزول عنه الاسم العام إلى الاسم الخاص فلا يسمى خليفة إلا بكمال الصورة الإلهية فيه إذ العالم لا ينظرون إلا إليها و لهذا لما لم تر الملائكة من آدم إلا الصورة الطبيعية الجسمية المظلمة العنصرية الكثيفة قالت ما قالت فلما أعلمهم اللّٰه بكمال الصورة فيه و أمرهم بالسجود له سارعوا بالسجود له و لا سيما و قد ظهر لهم بالفعل في تعليمه الأسماء إياهم و لو لم يعلمهم و قال لهم اللّٰه إني أعطيته الصورة و الشورة لأخذوها إيمانا و عاملوه بما عاملوه به لأمر اللّٰه فإذا كوشف الإنسان على الإنسان الكامل و رأى الحق في الصورة التي كساها الإنسان الكامل يبقى في حيرة بين الصورتين لا يدري لأيتهما يسجد فيخير في ذلك المقام بأن يتلى عليه ﴿فَأَيْنَمٰا تُوَلُّوا فَثَمَّ وَجْهُ اللّٰهِ﴾ [البقرة:115]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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