الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
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فإذا كانت هذه الصفة فيمن كانت ملك مقاليدها ثم قال بعد قوله ﴿حَفِيظٌ عَلِيمٌ﴾ [يوسف:55] أخبر أنه عالم بحاجة المحتاجين لما في هذه الخزائن التي خزن فيها ما به قوامهم عليم بقدر الحاجة فلما أعطى ﷺ مفاتيح خزائن الأرض علمنا أنه حفيظ عليم فكل ما ظهر من رزق في العالم فإن الاسم الإلهي لا يعطيه إلا عن أمر محمد ﷺ الذي بيده المفاتيح كما اختص الحق تعالى بمفاتيح الغيب فلا يعلمها إلا هو و أعطى هذا السيد منزلة الاختصاص بإعطائه مفاتيح الخزائن و الخصلة الثانية أوتي جوامع الكلم و الكلم جمع كلمة و كلمات اللّٰه لا تنفد فأعطى علم ما لا يتناهى فعلم ما يتناهى بما حصره الوجود و علم ما لم يدخل في الوجود و هو غير متناه فأحاط علما بحقائق المعلومات و هي صفة إلهية لم تكن لغيره فالكلمة منه كلمات كالأمر الإلهي الذي هو كلمة واحدة ﴿كَلَمْحٍ بِالْبَصَرِ﴾ [القمر:50] و ليس في التشبيه الحسي أعظم و لا أحق تشبيها به من اللمح بالبصر و لما علم بجوامع الكلم أعطى الإعجاز بالقرآن الذي هو كلمة اللّٰه و هو المترجم به عن اللّٰه فوقع الإعجاز في الترجمة التي هي له فإن المعاني المجردة عن المواد لا يتصور الإعجاز بها و إنما الإعجاز ربط هذه المعاني بصور الكلم القائم من نظم الحروف فهو لسان الحق و سمعه و بصره و هو أعلى المراتب الإلهية و ينزل عنها من كان الحق سمعه و بصره و لسانه فيكون مترجما عن عبده كما ترجم تعالى لنا في القرآن أحوال من قبلنا و ما قالوه فما فيه ذلك الشرف فإنه يترجم عن أهله و المقربين لديه كالملائكة فيما قالوه و يترجم عن إبليس مع إبلاسه و شيطنته و بعده بما قاله و لا يترجم عن اللّٰه إلا من له الاختصاص الذي لا اختصاص فوقه و الخصلة الثالثة بعثته إلى الناس كافة من الكفت و هو الضم ﴿أَ لَمْ نَجْعَلِ الْأَرْضَ كِفٰاتاً﴾ [المرسلات:25]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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