الفتوحات المكية

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و غيره من الأنبياء لم يكن نبيا إلا في حال نبوته و زمان رسالته فلنذكر في هذا الباب منزله و منزلته فالمنزل يظهر في بساط الحق و مقعد الصدق عند التجلي و الرؤية يوم الزور العام الأعظم فيعلم منزله بالبصر و الشهود و أما منزلته فهي منزلة في نفس الحق و مرتبة منه و لا يعلم ذلك إلا بإعلام اللّٰه و له المقام المحمود و هو فتح باب الشفاعة للملائكة فمن دونهم و له الأولية في الشفاعة و له الوسيلة و ليس في المنازل أعلى منها ينالها محمد ﷺ بسؤال أمته جزاء لما نالوه من السعادة به حيث أبان لهم طريقها فاتبعوه

[أعمال الأشقياء مجسدة و أعمال السعداء كذلك]

و اعلم أن هذا المنزل من يدخله يرى فيه عجائب لا يراها في غيره فمن ذلك أنه يرى أعمال الأشقياء مجسدة و أعمال السعداء كذلك مجسدة صورا قائمة تعقل وجود خالقها و قد جعل اللّٰه في نفوس هذه الصور طلبا على الأسباب التي وجدت عنها و هم العاملون و يجدون في طلبهم فأما أعمال السعداء فيرون على أيمانهم طريقا يسلكونها فتأخذ بهم تلك الطريق إلى مشاهدة أصحابهم و هم السعداء فيميز بعضهم بعضا و يتساءلون و يتخذونهم العاملون مراكب فوز و نجاة تحملهم إلى مستقر الرحمة و أما أعمال الأشقياء فتقوم لهم طرق متعددة متشعبة متداخلة بعضها في بعض لا يعرفون أي طريق تمشي بهم إلى أصحابهم فيحارون و لا يهتدون و هذا من رحمة اللّٰه بالأشقياء فإذا حارت أعمالهم رجعت إلى اللّٰه بالعبادة و الذكر و يتفرقون في تلك الطرق فمنهم من لا يهتدي إلى صاحبه أبد الآبدين و منهم من يصل إلى صاحبه فيشاهده و يتعرف إليه فيعرفه و يكون وجوده إياه مصادفة فيتعلق به و يقول له احملني فقد أتعبتنى في طلبك فيجبر العامل على حمله إلى أن تناله الرحمة رحمة اللّٰه و إلى جانب موقف هذه الصور طريقان واضحان طريق يكون غايته الحق الوجود و طريق لا غاية له فإنه يخرج السالك إلى العدم فلا يقف عند غايته فيه إذ العدم لا ينضبط بحد فيتقيد به بخلاف الحق الوجود فإنه يتقيد و إن كان مطلقا فإطلاقه تقييد في نفس الأمر فإنه متميز بإطلاقه عن الوجود المقيد فهو مقيد في عين إطلاقه و طريق ثالث بين هذين الطريقين برزخي لا تتصف غايته بالوجود و لا بالعدم مثل الأحوال في علم المتكلمين فأما الطريق التي يكون غايتها الوجود الحق فيسلك عليها الموحدون و المؤمنون و المشركون و الكافرون و جميع أصحاب العقائد الوجودية و أما الطريق الأخرى فلا يسلك عليها إلا المعطلة فلا ينتهي بهم إلى غاية و أما الطريق البرزخى فلا يسلك فيه إلا العلماء بالله خاصة الذين أثبتهم الحق و محاهم في عين إثباتهم و أبقاهم في حال فنائهم فهم الذين لا يموتون و لا يحيون إلى أن يقضي اللّٰه بين العباد فيأخذون ذات اليمين إلى طريق الوجود الحق و قد اكتسبوا من حقيقة تلك الطريق صفة و اكتسبوا منها هيأة تظهر عليهم في منزل الوجود الحق يعرفون بها بعضهم بعضا و لا يعرفهم بها أحد من أهل الطريقين و هذا ضرب مثل ضربه اللّٰه لأهل اللّٰه ليقفوا منه على مراتب الهدى و الحيرة و المهتدين و الضالين و جعل اللّٰه لهم نورا بل أنوارا يهتدون بها في ظلمات بر طبيعتهم و في ظلمات بحر أفكارهم و في ظلمات نفوسهم الناطقة برها و بحرها بما هي عليه في نشأتها إذ كانت متولدة بين النور الخالص و الطبيعة المحضة العنصرية الصرفية و تلك الأنوار المجعولة فيهم من الأسماء الإلهية فمن كان عارفا بها و ناظرا بها من حيث ما وجدت له وصل بها إلى العلم بالأمور و الكشف و من أخذها أنوارا لا يعلم أنها بالوضع للاهتداء و جعلها زينة كما تراها العامة في كواكب السماء زينة خاصة لم يحصل له منها غير ما رأى و يراها العلماء بمنازلها و سيرها و سياحتها في أفلاكها موضوعة للاهتداء بها فاتخذوها علامات على ما يبتغونه في سيرهم على الطرق الموصلة إلى ما دعاهم الحق إليه من العلم به أو إلى السعادة التي هي الفوز خاصة



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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