الفتوحات المكية

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﴿مٰا كٰانَ لِي مِنْ عِلْمٍ بِالْمَلَإِ الْأَعْلىٰ إِذْ يَخْتَصِمُونَ﴾ [ص:69] حتى أعلمه اللّٰه تعالى فعلم إن للطبيعة فيهم أثرا كما إن للأركان في أجسام المولدات أثرا فلما كان الناس شجرات جعل فيهم ولاة يرجعون إليهم إذا اختصموا ليحكموا بينهم ليزول حكم التشاجر و جعل لهم إماما في الظاهر واحدا يرجع إليه أمر الجميع لإقامة الدين و أمر عباده أن لا ينازعوه و من ظهر عليه و نازعه أمرنا اللّٰه بقتاله لما علم إن منازعته تؤدي إلى فساد في الدين الذي أمرنا اللّٰه بإقامته و أصله قوله تعالى ﴿لَوْ كٰانَ فِيهِمٰا آلِهَةٌ إِلاَّ اللّٰهُ لَفَسَدَتٰا﴾ [الأنبياء:22] فمن هناك ظهر اتخاذ الإمام و أن يكون واحدا في الزمان ظاهرا بالسيف فقد يكون قطب الوقت هو الإمام نفسه كأبي بكر و غيره في وقته و قد لا يكون قطب الوقت فتكون الخلافة لقطب الوقت الذي لا يظهر إلا بصفة العدل و يكون هذا الخليفة الظاهر من جملة نواب القطب في الباطن من حيث لا يشعر فالجور و العدل يقع في أئمة الظاهر و لا يكون القطب إلا عدلا و أما سبب ظهوره في وقت و خفاء بعضهم في وقت فهو إن اللّٰه ما جبر أحدا على كينونته في مقام الخلافة و إنما اللّٰه أعطاه الأهلية لذلك المقام و عرض عليه الظهور فيه بالسيف حسبما ما أمره فمن قبله ظهر بالسيف فكان خليفة ظاهرا و باطنا ما ثم غيره و إن اختار عدم الظهور لمصلحة رآها أخفاه اللّٰه و أقام عنه نائبا في العالم يسمى خليفة يجور و يعدل و قد يكون عادلا على قدر ما يوفقه اللّٰه سبحانه و يكون حكمه و إن كان جائرا حكم الإمام العادل من نازعه قتل و لا يقتل إلا الآخر فإنه المنازع و أمرنا اللّٰه أن لا نخرج يدا من طاعته و أخبرنا أنه من عدل منهم فلهم و أن من جار منهم فعليهم و لنا و لما كان الإنسان شجرة كما ذكرناه نهى اللّٰه أول إنسان عن قرب شجرة عينها له دون سائر الشجرات كما هو الإنسان شجرة معينة بالخلافة دون سائر الشجرات فنبهه أن لا يقرب هذه الشجرة المعينة على نفسه و ظهر ذلك في وصيته لداود ﴿وَ لاٰ تَتَّبِعِ الْهَوىٰ﴾ [ص:26]



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