الفتوحات المكية

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و التكوين الإلهي عن قول ﴿كُنْ﴾ [البقرة:12] و هو ثلاثة أحرف كاف و واو و نون الواو بين الكاف و النون لا ظهور لها لأمر عارض أعطاه سكون النون و سكون الواو إلا أنه للنون سكون أمر فانظر سريان الفردية الأولية كيف ظهر في بروز الأعيان و اعتبر فيما يتكون عنه ثلاثة أمورا جعلها حقوقا فمن أحضر من العابدين المنشئين صور أعمالهم و عباداتهم هذه الحقوق عند إرادتهم إنشاءها و أعطى كل ذي حق حقه في هذه النشآت كان أتم و أعلى درجة عند اللّٰه ممن لم يقصد ما قصده و الصورة المنشأة فيها ثلاثة حقوق يقصدها الموجد الفرد الحق الواحد لله و هو ما يستحقه منها من التنزيه أو التسبيح بحمده و حق النفس الصورة من الاسم الفرد و هو إيجادها بعد أن لم تكن لتتميز في حضرة الوجود و تنصبغ به و تلحق بما هو صفة لخالقها و موجدها و هو اللّٰه و هذه الدرجة الأولى من درجات التشبه به للظهور في الوجود و الانصباغ به و الحق الثالث ما للغير في وجودها من المصلحة فتعطيه تلك النشأة حق ذلك الغير منها و هو مقصود لموجدها و ذلك الغير صنفان الصنف الواحد الأسماء الإلهية فتظهر آثارها المتوقف ظهور تلك الآثار على وجود هذه العين و الصنف الآخر ما فيها من حقوق الممكنات التي لا تكون لها إلا بوجود هذه الصورة المنشأة فيقصد المنشئ لها في حين الإنشاء هذه الأمور كلها فيكون الثناء الإلهي على هذا العابد بحسب ما أحضر من ذلك و ما قصد فمنهم من يجمع هذا كله في صورة عبادته و صورة عمله فيسري التثليث في جميع الأمور لوجوده في الأصل و لهذا قال فيمن قال بالتثليث إنه كافر فقال ﴿لَقَدْ كَفَرَ الَّذِينَ قٰالُوا إِنَّ اللّٰهَ ثٰالِثُ ثَلاٰثَةٍ﴾ [المائدة:73]



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