الفتوحات المكية

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﴿وَ لِيَذَّكَّرَ أُولُوا الْأَلْبٰابِ﴾ [ابراهيم:52] في حق طائفة أخرى أيضا و القرآن واحد في نفسه تكون الآية منه تذكرة لذي اللب و توحيد الطالب العلم بتوحيده و إنذارا للمترقب الحذر و بلاغا للسامع ليحصل له أجر السماع كالعجمي الذي لا يفهم اللسان فيسمع فيعظم كلام اللّٰه من حيث نسبته إلى اللّٰه و لا يعرف معنى ذلك اللفظ حتى يشرح له بلسانه و يترجم له عنه فمن جملة الخطابات الإلهية البشارات و هي على قسمين بشارة بما يسوء مثل قوله ﴿فَبَشِّرْهُمْ بِعَذٰابٍ أَلِيمٍ﴾ [آل عمران:21] و بشارة بما يسوء مثل قوله تعالى ﴿فَبَشِّرْهُ بِمَغْفِرَةٍ وَ أَجْرٍ كَرِيمٍ﴾ [يس:11] فكل خير يؤثر وروده في بشرة الإنسان الظاهرة فهو خبر بشري و ذلك لا يكون إلا في رجلين إما في شخص يكون في قوة نفسه أن لا تتغير بشرته بما يتحقق كونه و إما شخص غير مصدق بذلك الخبر من ذلك المخبر فلا يخلو هذا القوي النفس هل أثر ذلك الخبر في باطنه أو لم يؤثر فإن أثر خبر هذا المخبر في نفسه فهو أحد رجلين إما عالم محقق بوقوعه و إما مجوز و إن لم يؤثر في نفسه فهو غير عالم و لا مصدق معا فيكون ذلك الخبر في حق الأول بشرى متعلقها الصورة المتخيلة في نفسه التي تأثرت لهذا الخبر فلو لم تقم بخياله تلك الصورة المضاهية للصورة الحسية لما كانت بشرى في حقه و لا كانت تؤثر في باطنه سرورا و لا حزنا و إن لم يظهر ذلك في ظاهره فلو تجردت الأرواح عن المواد لما صحت البشائر في حقها و لا حكم عليها سرور و لا حزن و لكان الأمر لها علما مجردا من غير أثر فإن الالتذاذ الروحاني إنما سببه إحساس الحس المشترك مما يتأثر له المزاج من الملاءمة و عدم الملاءمة و بالقياسات و أما الأرواح بمجردها فلا لذة و لا ألم و قد يحصل ذلك لبعض العارفين في هذا الطريق قال أبو يزيد ضحكت زمانا و بكيت زمانا و أنا اليوم لا أضحك و لا أبكي و هو عين ما قلناه فإنه وقف مع مجرد روحه من غير نظر إلى طبيعته فما شاهد إلا علما محضا كما يرتفع عن النظر في توحيد الحق من حيث توحيد الألوهية إلى توحيد ذاته من حيث هو لنفسه لا من حيث المرتبة التي بها يتعلق الممكن فيشاهده في ذلك التوحيد واحدا لا واحدا معرى عن النسب و الإضافات مجهولا للممكنات غير منسوب لنفسه بأنه عالم بنفسه لنفسه فهو في ذلك التوحيد عينه لا من حيث هو عينه و لا من حيث لا هو عينه و هذا أسنى المراتب في تجريد الكون عن التعلق به و هو كمال الأحدية لا كمال الوحدانية فإن كمال الوحدانية في سريان أحديته في العقائد فإن الوحداني هو الذي يطلب الموحدين و الأحدية لا تطلب ذلك كالجسماني هو الذي يطلب الأجسام ليظهر بها حكمه فاعلم فإذا رأيت عارفا تأتي عليه أسباب الالتذاذ و أسباب التألم و لا يلتذ و لا يتألم لا بالمحسوس و لا بالمعقول في اقتناء العلوم الملذة فتعلم إن وقته التجرد التام عن طبيعته و هذا أقوى التشبه الذي يسعى إليه العلماء بالله و واجده قليل و القليل الذي يجده قليل الاستصحاب لهذا الوجدان و إنما اللّٰه يكرم به من شاء من عباده في خطرات ما ليعلمه بالتوحيد الذاتي الذي ذكرناه فإن طائفة من العقلاء نسبوا الالتذاذ و الابتهاج إلى ذلك الجناب بالكمال الذي هو عليه تعالى الأحد في ذاته عن هذا الوصف لكن الوحدانية الإلهية هي التي ينظر إليها القائلون بهذا القول و لا يشعرون قال تعالى



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