الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 6430 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

لا يقبل الكون و الإمكان يقبله *** فكل أمر فقد وفى سليقته

لذاك فزنا من الأعلى بصورته *** عناية منه أعطاها خليقته

لو كان للكون مثل عق تكرمة *** له ليطعمه جودا عقيقته

لكنه مفرد و الحق ليس له *** عين التغذي فما أعطاه صورته

[أن العالم كان ممكنا و لم يكن محالا قبل حاله الوجود]

اعلم وفقك اللّٰه أيها الولي الحميم أن العالم لما كان ممكنا و لم يكن محالا قبل حاله الوجود و المحال لا يقبل الوجود فخالفت حقيقة الممكن بقبولها للوجود حقيقة المحال الذي لا يقبله و لما أوجد اللّٰه العالم إنسانا كبيرا و جعل آدم و بنيه مختصر هذا العالم و لهذا أعطاه الأسماء كلها أي كل الأسماء المتوجهة على إيجاد العالم و هي الأسماء الإلهية التي يطلبها العالم بذاته إذ كان وجوده عنها «فقال ﷺ إن اللّٰه خلق آدم على صورته» إذ كانت الأسماء له و عنها وجد العالم فالعالم بجملته إنسان كبير و لما كرمه اللّٰه بالصورة طلب العالم و الأمثال الشكر من الإنسان على ذلك فكانت العقيقة التي جعل اللّٰه على كل إنسان شكرا لما خصه به من الوجود على هذه الحالة و جعلها في سابعه إذ كان على حالة لا تقبل التغذي منها لئلا يكون قد سعى لنفسه فأكلها الأمثال و كل إنسان مرهون بعقيقته و ينبغي له إذا عق عن نفسه في كبره إن لا يأكل منها شيئا و يطعمها الناس و لذلك لم يعق العالم بجملته عن نفسه و إن كان على الصورة لأنه ما ثم من يأكل عقيقته فإنه ما ثم إلا اللّٰه و العالم و المعق عنه لا يأكل منها و الحق يتنزه عن الغذاء و الأكل و ليست هذه المنزلة إلا لله فكانت عقيقة العالم تعود عبثا فجعل سبحانه بدلا من هذا الشكر الذي هو العقيقة التسبيح بحمده شكرا على ما أولاه من وجوده على صورته فقال



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!