الفتوحات المكية

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و أرواح أخر مسخرات لنا و هم على طبقات كثيرة فمنهم الموكل بالوحي و الإلقاء و منهم الموكل بالأرزاق و منهم الموكل بقبض الأرواح و منهم الموكل بإحياء الموتى و منهم الموكل بالاستغفار للمؤمنين و الدعاء لهم و منهم الموكلون بالغراسات في الجنة جزاء لأعمال العباد

[إن اللّٰه جعل للأرواح الأناسي آلات طبيعية]

فاعلم إن أرواح الأناسي جعل اللّٰه لها آلات طبيعية كالعين و الأذن و الأنف و الحنك و جعل فيها قوى سماها سمعا و بصرا و غير ذلك و خلق لهذه القوي وجهين وجه إلى المحسوسات عالم الشهادة و وجه إلى حضرة الخيال و جعل حضرة الخيال محلا واسعا أوسع من عالم الشهادة و جعل فيها قوة تسمى الخيال إلى قوى كثيرة مثل المصورة و الفكر و الحفظ و الوهم و العقل و غير ذلك و بهذه القوي تدرك النفس الإنسانية جميع ما يعطيها حقائق هذه القوي من المعلومات فبالوجه الذي للبصر إلى عالم الشهادة تدرك جميع المحسوسات و ترفعها إلى الخيال فتحفظها في الخيال بالقوة الحافظة بعد ما تصورها القوة المصورة و قد تأخذ القوة المصورة أمورا من موجودات مختلفة كلها محسوسة و تركب منها شكلا غريبا ما أبصرته قط حسا بمجموعه لكن ما فيه جزء إلا و قد أبصرته فإذا نام الإنسان نظر البصر بالوجه الذي له إلى عالم الخيال فيرى ما فيه مما نقله الحس مجموعا أو مما صورته القوة المصورة مما لم يقع الحس على مجموعه قط لا على أجزائه التي تألفت منها هذه الصورة فتراه نائما إلى جانبك و هو يبصر نفسه معذبا أو منعما أو تاجرا أو ملكا أو مسافرا و يطرأ عليه خوف في منامه في خياله فيصيح و يزعق و الذي إلى جانبه لا علم له بذلك و لا بما هو فيه و ربما إذا اشتد الأمر تغير له المزاج فأثر في الصورة الظاهرة النائمة حركة أو زعاقا أو كلاما أو احتلاما كل ذلك من غلبة تلك القوة على الروح الحيواني فيتغير البدن في صورته فإذا تنزلت الأملاك المسخرة بالوحي على الأنبياء عليه السّلام أو تنزل رقائق منها على قلوب الأولياء لأن الملك لا ينزل بوحي على قلب غير نبي أصلا و لا بأمر إلهي جملة واحدة فإن الشريعة قد استقرت و تبين الفرض و الواجب و المندوب و المباح و المكروه فانقطع الأمر الإلهي بانقطاع النبوة و الرسالة و لهذا لم يكتف رسول اللّٰه ﷺ بانقطاع الرسالة فقط لئلا يتوهم أن النبوة باقية في الأمة «فقال عليه السّلام إن النبوة و الرسالة قد انقطعت فلا نبي بعدي و لا رسول» فما بقي أحد من خلق اللّٰه يأمره اللّٰه بأمر يكون شرعا يتعبده به فإنه إن أمره بفرض كان الشارع قد أمره به فالأمر للشارع و ذلك وهم منه و ادعاء نبوة قد انقطعت فإن قال إنما يأمره بالمباح قلنا لا يخلو إما أن يرجع ذلك المباح واجبا في حقه فهذا هو عين نسخ الشرع الذي هو عليه حيث صير بهذا الوحي المباح الذي قرره الرسول مباحا واجبا يعصي بتركه و إن أبقاه مباحا كما كان فكذلك كان فآية فائدة في الأمر الذي به جاء هذا الملك لهذا المدعي صاحب هذا المقام فإن قال ما جاء به ملك لكن اللّٰه أمرني به من غير واسطة قلنا هذا أعظم من ذلك فإنك ادعيت أن اللّٰه يكلمك كما كلم موسى عليه السّلام و لا قائل به لا من علماء الرسوم و لا من علماء أهل الذوق ثم إنه لو كلمك أو لو قال لك فما كان يلقي إليك في كلامه إلا علوما و أخبارا لا أحكاما و لا شرعا و لا يأمرك أصلا فإنه إن أمرك كان الحكم مثل ما قلنا في وحي الملك فإن كان ذلك الذي دندنت عليه عبارة عن إن اللّٰه خلق في قلبك علما بأمر ما فما ثم في كل نفس إلا خلق العلم في كل إنسان ما يختص به ولي من غيره و قد بينا في هذا الكتاب و غيره ما هو الأمر عليه و منعنا جملة واحدة أن يأمر اللّٰه أحدا بشريعة يتعبده بها في نفسه أو يبعثه بها إلى غيره و ما نمنع أن يعلمه الحق على الوجه الذي نقرره و قرره أهل طريقنا بالشرع الذي تعبده به على لسان الرسول عليه السّلام من غير أن يعلمه ذلك عالم من علماء الرسوم بالمبشرات التي أبقيت علينا من آثار النبوة و هي الرؤيا يراها الرجل المسلم أو ترى له و هي حق و وحي و لا يشترط فيها النوم لكن قد تكون في النوم و في غير النوم و في أي حالة كانت فهي رؤيا في الخيال بالحس لا في الحس و المتخيل قد يكون من داخل في القوة و قد يكون من خارج بتمثل الروحاني أو التجلي المعروف عند القوم و لكن هو خيال حقيقي إذا كان المزاج المستقيم المهيا للحق فإذا ورد الملك على النبي عليه السّلام بحكم أو بعلم خبري و إن كان الكل من قبيل الخبر و لقي تلك الصورة الروح الإنساني و تلاقى هذا بالإصغاء و ذلك بالإلقاء و هما نوران احتد المزاج و اشتعل و تقوت الحرارة الغريزية المزاجية في النورين و زادت كميتها فتغير وجه الشخص لذلك و هو المعبر عنه بالحال و هو أشد ما يكون و تصعد الرطوبات البدنية بخارات إلى سطح كرة البدن لاستيلاء الحرارة فيكون من ذلك العرق الذي يطرأ على أصحاب هذه الأحوال للانضغاط الذي يحصل بين الطبائع من التقاء الروحين و لقوة الهواء الحار الخارج من البدن بالرطوبات تغمر المسام فلا يتخلله الهواء البارد من خارج فإذا سرى عن النبي و عن صاحب الحال و انصرف الملك من النبي و الرقيقة الروحانية من الولي سكن المزاج و انفشت تلك الحرارة و انفتحت المسام و قبل الجسم الهواء البارد من خارج فتخلل الجسم فيبرد المزاج فيزيد في كمية البرودة و تستولي على الحرارة و تضعفها فذلك هو البرد الذي يجده صاحب الحال و لهذا تأخذه القشعريرة فيزاد عليه الثياب ليسخن ثم بعد ذلك يخبر بما حصل له في تلك البشرى إن كان وليا أو في ذلك الوحي إن كان نبيا و هذا كله إذا كان التنزيل على القلب بالصفة الروحانية فإن كان نفثا فهو الإلهام و هذا يكون للولي و للنبي و أما إن حدث فسمع من غير رؤية فهو المحدث و أما إن تراءى له الملك إن كان نبيا في زمان وجود النبوة أو تراءت له الرقيقة رجلا ممثلا أو صورة حيوان يخاطبه بما جاء به إليه فإن كان وليا فيعرضه على الكتاب و السنة فإن وافق رآه خطاب حق و تشريف لا غير لا زيادة حكم و لا إحداث حكم لكن قد يكون بيان حكم أو أعلاما بما هو الأمر عليه فيرجع ما كان مظنونا معلوما عنده و إن لم يوافق الكتاب و السنة رآه خطاب حق و ابتلاء لا بد من ذلك فعلم قطعا إن تلك الرقيقة ليست برقيقة ملك و لا بمجلى إلهي و لكن هي رقيقة شيطانية فإن الملائكة ليس لها مثل هذا المقام و إنها أجل من ذلك و أكثر ما يطرأ هذا على أهل السماع من الحق في الخلق فما بقي للأولياء اليوم بعد ارتفاع النبوة إلا التعريف و انسدت أبواب الأوامر الإلهية و النواهي فمن ادعاها بعد محمد فهو مدع شريعة أوحي بها إليه سواء وافق بها شرعنا أو خالف و أما في غير زماننا قبل رسول اللّٰه ﷺ فلم يكن تحجير و لذلك قال العبد الصالح خضر



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