الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

﴿فِي أَحْسَنِ تَقْوِيمٍ﴾ [التين:4] أي التقويم الذي خلقه عليه أفضل من كل تقويم و ما صحت له هذه الصفة التي فضل بها على غيره إلا بكونه خلقه اللّٰه على صورته فإن قلت فهذا التغيير الذي يطرأ على الإنسان في نفسه و صورة الحق لا تقبل التغيير قلنا اللّٰه يقول في هذا المقام ﴿سَنَفْرُغُ لَكُمْ أَيُّهَ الثَّقَلاٰنِ﴾ و «قال صلى اللّٰه عليه و سلم فرغ ربك و قال يتجلى في أدنى صورة ثم يتحول عند إنكارهم إلى الصورة التي عرفوه فيها بالعلامة التي يعرفونها» فقد أضاف إلى نفسه هذا المقام و هو العلي عن مقام التغيير بذاته و التبديل و لكن التجليات في المظاهر الإلهية على قدر العقائد التي تحدث للمخلوقين مع الآنات تسمى بهذا المقام و إذا كان الأمر على ما ذكرناه و كذلك هو فيصح ما ذكرناه و يرتفع الاعتراض الوهمي تعالى اللّٰه علوا كبيرا*

[الحروف المرقومة في الصحف يفهم منها كلام اللّٰه]

و مما يتضمن هذا المنزل من العلوم علم أسماء الأسماء و أن لها من الحرمة ما للمسمى بأسمائها فالحروف المرقومة في الصحف أعيان كلام يفهم منها كلام اللّٰه الذي هو موصوف به و لما ذا يرجع ذلك الوصف علم آخر اختلف الناس فيه و لا حاجة لنا في الخوض في ذلك فالحق سبحانه من كونه متكلما يذكر نفسه بأسمائه بحسب ما ينسب إليه الكلام الذي لا تكليف نسبته و لتلك الأسماء أسماء عندنا في لغة كل متكلم فيسمى بلغة العرب الاسم الذي سمي به نفسه من كونه متكلما اللّٰه و بالفارسية خداي و بالحبشية واق و بلسان الفرنج كربطور و هكذا بكل لسان فهذه أسماء تلك الأسماء و تعددت لتعدد النسب فهي معظمة في كل طائفة من حيث ما تدل عليه و لهذا نهينا عن السفر بالمصحف إلى أرض العدو و هو خط أيدينا أوراق مرقومة بأيدي المحدثات بمداد مركب من عفص و زاج فلو لا هذه الدلالة لما وقع التعظيم لها و لا الحقارة و لهذا يقال كلام قبيح و كلام حسن في عرف العادة و في عرف الشرع و أمثال ذلك و سببه مدلول هذه الألفاظ في الاصطلاح و الوضع و هذا علم شريف لا يدركه سوى أهل الكشف على ما هو الأمر عليه فليس بأيدينا سوى أسماء الأسماء فإذا وقع التنزيه لأسماء الأسماء فتنزيه العبد الكامل أولى بالحرمة لأجل الصورة و لا سيما الوجه إذ كان الوجه أشرف ما في ظاهر الإنسان لكونه حضرة جميع القوي الباطنة و الظاهرة و وجه كل شيء ذاته



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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