الفتوحات المكية

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لما اطلع عليه ﴿فَرَآهُ فِي سَوٰاءِ الْجَحِيمِ﴾ [الصافات:55] و هو قوله ﴿مٰا أَظُنُّ السّٰاعَةَ قٰائِمَةً﴾ [الكهف:36] و «ورد في الأخبار الإلهية الصحاح عن رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم عن ربه عزَّ وجلَّ فيما يقوله لعبده يوم القيامة أ فظننت إنك ملاقي» فلنمثل لك منها الأمهات التي بنى الإسلام عليها و هي خمسة لا إله إلا اللّٰه و إقام الصلاة و إيتاء الزكاة و صيام رمضان و ﴿حِجُّ الْبَيْتِ مَنِ اسْتَطٰاعَ إِلَيْهِ سَبِيلاً﴾ [آل عمران:97] فمن الناس من آمن بها كلها فسعد و منهم من كفر بها كلها فشقي و منهم من آمن ببعضها و كفر ببعضها فهو ملحق بالكافر إلحاق حق و هكذا جميع الأوامر و النواهي التي تقتضيها فروع الشريعة في جميع حركات الإنسان و سكونه في الايمان بالحكم المشروع فيها و الكفر و العمل المشروع فيها بظاهر الإنسان المكلف و باطنه و ترك العمل و يحصر ذلك عقد و قول و عمل و في مقابلته حل و صمت و ترك عمل هذه مقابلة من وجه في حق قوم و مقابلة أخرى في حق قوم أو هذا الشخص بعينه و هو عقد مخالف لعقد و قول يخالف قولا و عمل مخالف لعمل إذ كان لا يلزم من صاحب الحل أن يكون قد عقد أمرا آخر فإن الحل إنما متعلقة ذلك العقد الإيماني بذلك المعقود عليه فأسقطه المعطل فلم يرتبط بعقد آخر و شخص آخر عقد على وجود الشريك لله فحل من عنقه عقد حبل التوحيد و عقد حبل التشريك فلهذا فصلنا الأمر على ما يكون عليه في الدار الآخرة موازنا لحالة الدنيا و هذا صورة الشكل في الأمهات و عليها نأخذ جميع المأمور بها و المنهي عنها من العمل بالمأمور و القول به و الايمان به و ترك ذلك حلا و عقدا في الكل أو في البعض و كذلك المنهي عنها من العمل به و القول به و العقد عليه و ترك ذلك حلا و عقدا للكل و البعض صورة درج الجنة و درك النار و الأعراف و هو السور الذي



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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