الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

اعلم أن اللّٰه لما خلق الأرواح الملكية المهيمة و هم الذين لا علم لهم بغير اللّٰه لا يعلمون أن اللّٰه خلق شيئا سواهم و هم الكروبيون المقربون المعتكفون المفردون المأخوذون عن أنفسهم بما أشهدهم الحق من جلاله اختص منهم المسمى بالعقل الأول و الأفراد منا على مقامهم فجلال اللّٰه في قلوب الأفراد على مثل ذلك فلا يشهدون سوى الحق و هم خارجون عن حكم القطب الذي هو الإمام و هو واحد منهم و لكنه يكون مادته من العقل الأول الذي هو أول موجود من عالم التدوين و التسطير و هو الموجود الإبداعي ثم بعد ذلك من غير بعدية زمان انبعث عن هذا العقل موجود انبعاثي و هو النفس و هو اللوح المحفوظ المكتوب فيه كل كائن في هذه الدار إلى يوم القيامة و ذلك علم اللّٰه في خلقه و هو دون القلم الذي هو العقل في النورية و المرتبة الضيائية فهو كالزمردة الخضراء لانبعاث الجوهر الهبائي الذي في قوة هذه النفس فانبعث عن النفس الجوهر الهبائي و هو جوهر مظلم لا نور فيه و جعل اللّٰه مرتبة الطبيعة بين النفس و الهباء مرتبة معقولة لا موجودة ثم بما أعطى اللّٰه من وضع الأسباب و الحكم و رتب في العالم من وجود الأنوار و الظلم لما يقتضيه الظاهر و الباطن كما جعل الابتداء في الأشياء و الانتهاء في مقاديرها بأجل معلوم و ذلك إلى غير نهاية فما ثم إلا ابتداءات و انتهاءات دائمة من اسميه الأول و الآخر فعن تينك الحقيقتين كان الابتداء و الانتهاء دائما فالكون جديد دائما فالبقاء السرمدي في التكوين فأعطى لهذه النفس لما ذكرناه قوة عملية عن تلك القوة أوجد اللّٰه سبحانه بضرب من التجلي الجسم الكل صورة في الجوهر الهبائي و ما من موجود خلقه اللّٰه عند سبب إلا بتجل إلهي خاص لذلك الموجود لا يعرفه السبب فيتكون هذا الموجود عن ذلك التجلي الإلهي و التوجه الرباني عند توجه السبب لا عن السبب و لو لا ذلك لم يكن ذلك الموجود و هو قوله سبحانه و تعالى فينفخ فيه فلم يكن للسبب غير النفخ فيكون طائرا بإذن اللّٰه فالطائر إنما كان لتوجه أمر اللّٰه عليه بالكون و هو قوله تعالى ﴿كُنْ﴾ [البقرة:12]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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