الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 5897 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

و اعلم أن المراتب التي يكون الخلق عليها متفاضلة في كل جنس فالرسل يفضل بعضهم بعضا و الأنبياء يفضل بعضهم بعضا و المحققون يفضل بعضهم بعضا و العارفون يفضل بعضهم بعضا و هكذا إلى أصحاب الصنائع العملية فهذا المنزل يفضل غيره في التجليات الإلهية المشبه رؤيتها برؤية القمر و الشمس بألفي تجل و ثمان تجليات منطوية مندرجة في الألفين المذكورين غير أن هذه الثمانية لها خصوص وصف يظهر في تجلى المقامات الذي هو مائة و ستة و ستون تجليا فعند ذلك يظهر سلطان هذه الثمانية من التجليات و يعطي من المعارف ما شاء اللّٰه أن يعطي و أما الألفان فهي تجليات سريعة الزوال مكثها قليل و لا تعطي علما عاما و أما المائة و الستة و الستون فتعطي من العلوم العامة السارية في الموجودات و بقائها و ما يكون عنها و بسببها علما عاما مجردا خالصا ثابتا لا يتزلزل و لا يشتبه و إن كان حكمه ينتقل منه و فيه و لا يخرج عنه و اختلف أصحابنا هل ثم تجل في هذه التجليات يتصف بالنقص من حيث الصورة التي يتجلى فيها إذا كانت صورة طبيعية و الطبائع رباعية فيكون التجلي الناقص في الصورة الطبيعية في وقت في العنصر الناري فيكون غير كامل في نفسه و لكن يعطي بحسب ما يعطيه عنصره لا يزيد عليه فإذا كان في تجل آخر انضاف إلى تلك الصورة العنصر الثاني إلى أن يكمل العناصر في أربع تجليات فيقع التجلي في العنصر الرابع بكمال الصورة الطبيعية على صورة مكملة فيلحق بإخوانه من التجليات و الأمر عندنا ليس كذلك و لا يصح أن يكون هناك تجل ينقص أو يزيد و إنما هذا الشخص القائل بهذا ظهرت له حالته في عين التجلي فتخيل أن النقص في التجلي و كان النقص فيه ثم اتفق أنه لما تجلى له التجلي الثاني رأى تلك الصورة التي كان عليها في نفسه قد زاد فيها ما لم يكن و النقص و الزيادة فيه فحكم على التجلي بذلك



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!