الفتوحات المكية

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اعلم أيها الولي الحميم نور اللّٰه بصيرتك أن العلم بالجزاء عن نور الايمان لا عن نور العقل فإن ارتباط الجزاء بالأعمال في الدنيا و الآخرة لا يعلم إلا من طريق الايمان و الكشف فأما تسميتنا إياه علما أعني علم الايمان و إن كان عين التصديق بخبر المخبر فمثل هذا لا يكون علما لزواله لو رجع المخبر عنه تقديرا و حينئذ فله وجهان الواحد أن المؤمن يجده ضرورة في نفسه لو رام الانفكاك عنه لم يقدر على ذلك فهو عنده من العلوم الضرورية عند كل عقل عنده الايمان و الوجه الآخر أن الايمان له نور يكشف به ما وقع الإخبار به كما يكشف المدلول العقل بالنظر الصحيح في الدليل الشاد بل أكمل لأن العقل إن لم يستند في دليله و برهانه إلى العلوم الضرورية في ذلك و إلا فليس ببرهان عنده و لا هو علم و علم الايمان علم ضروري و هو مستند العقل في الحق المطلوب فالإنسان إذا سئل عن الجزاء من جهة علمه النظري لم يقل إنه جزاء و إنما اقتضت الحركة الفلكية وجود هذه الواقعة في عالم الكون و الفساد بحسب القابل لها منه و اتفق أيضا أنه كان قبل ذلك حركة أخرى اقتضت لهذا القابل من عالم الكون و الفساد وجود أمر ما ظهر منه فنوسب بين الواقعتين الأولى و الثانية بأمر عرضي أو أمر وضعي مقرر في نفوس العامة فسموا الواقعة الآخرة جزاء للواقعة الأولى لمن قامت به ليس غير ذلك فما يدرك تلك الرابطة إلا أهل الكشف الإلهي و إن أدركها أهل النظر العقلي لأنه قد يدرك الرابطة من كونها فعلا لا من كونها جزاء و لا سبيل إلى رفع ذلك جملة واحدة و أهل الكلام من علماء النظر يجوزون رفعها بنور عقولهم و صدقوا فإن نور العقل لا يتعدى قوته فيما يعطيه و نور الايمان فوق ذلك يعطي أيضا بحسب قوته و ما جعل اللّٰه فيه مما لا يدركه العقل معرى عن الشرط فإن العقل يقول إن كان سبق العلم به فلا بد منه عقلا فأدخل الشرط و الايمان ليس كذلك فإنه عن كشف محقق لا مرية فيه ثم إن طائفة من العقلاء الذين ذكرناهم و هي التي أثبتت الفعل و لم تصدق أنه جزاء أنكروا ذلك دنيا و آخرة فأما دنيا فلما ذكرناه و أما آخرة فانقسموا في ذلك قسمين فطائفة منهم أثبتوا الآخرة على وجه يخالف وجه الايمان و هم الذين أنكروا الإعادة في الأجسام الطبيعية و طائفة نفت الآخرة جملة واحدة فأحرى الجزاء فأما الطائفة التي أثبتت الآخرة و أنكرت الجزاء فما أنكرت إلا الجزاء الحسي من نعيم الجنان و جعلت الجزاء الروحاني كون الأرواح لما فارقت تدبير أجسادها و تخلصت من أسر الطبيعة و كانت في هذه المدة قد اكتسبت من الأخلاق الكريمة و العلوم الإلهية و الروحانية هيأة حسنة ألحقتها بالرتبة الملكية فلما انفصلت عن الطبيعة انفصالا يسمى الموت التحقت بالملائكة و دام لها ذلك مؤبدا فكان ذلك الدوام لها في هذه الرتبة الملكية ثمرة جنتها مما حصلته في حال سجنها في تدبير جسمها الطبيعي فذلك المسمى جزاء في الشرع و ما ثم غيره و أهل الايمان بالله و ما جاء من عنده و هم أصحابنا و أهل الكشف منا أيضا الذين عملوا بنور الايمان قد جمعنا مع هؤلاء فيما ذكروه من الجزاء الروحاني للنفوس التعليمية و انفردنا عنهم بالإعادة في الأجسام الطبيعية على مزاج مخصوص يقتضي لها البقاء في دار الكرامة و الجزاء الحسي من اللباس و الزينة و الأكل و الشرب و النكاح و رفع الخبائث من منزل الجنان كالأمور المستقذرة طبعا و الأرواح النتنة طبعا و ذلك في حال السعداء و أما في حال الأشقياء فالإعادة أيضا لهم في الأجساد الطبيعية و لكن على مزاج يقارب مزاج الدنيا في الذهاب و الزوال بالعلل المنضجة للجلود المذهبة لأعيانها و إيجاد غيرها مع بقاء العين المعذبة بذلك فليست تشبه إعادة الأشقياء إعادة السعداء و إن اشتركا في الإعادة فمرض الأشقياء في دار الشقاء زمانة مؤبدة إلى غير نهاية مدة أعمارهم التي لا انقضاء لها كالزمانة التي كانت للزمني في الدنيا مدة أعمارهم و تعلم كل طائفة من هؤلاء أن بعض الذي هم فيه



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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