الفتوحات المكية

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اعلموا أن المراد في اصطلاح القوم هو المجذوب عن إرادته مع تهيؤ الأمور له فهو يجاوز الرسوم و المقامات من غير مشقة بل بالتذاذ و حلاوة و طيب تهون عليه الصعاب و شدائد الأمور و ينقسم المرادون هنا إلى قسمين القسم الواحد أن يركب الأمور الصعبة و تحل به البلايا المحسوسة و النفسية و يحس بها و يكره ذلك الطبع منه غير أنه يرى و يشاهد ما له في ذلك في باطن الأمر عند اللّٰه من الخير مثل العافية في شرب الدواء الكرية فيغلب عليه مشاهدة ذلك النعيم الذي في طي هذا البلاء فيلتذ بما يطرأ عليه من مخالفة الغرض و هو العذاب النفسي و من الآلام المحسوسة لأجل هذه المشاهدة كعمر بن الخطاب رضي اللّٰه عنه فإنه من أصحاب هذا المقام فقال في ذلك ما أصابني اللّٰه بمصيبة إلا رأيت أن لله علي فيها ثلاث نعم النعمة الواحدة حيث لم تكن تلك المصيبة في ديني و النعمة الثانية حيث لم تكن مصيبة أكبر منها إذ في الجائز أن يكون ذلك و النعمة الثالثة ما عند اللّٰه لي فيها من تكفير الخطايا و رفع الدرجات فاشكر اللّٰه تعالى عند حلول كل مصيبة و هنا فقه عجيب في طريق القوم تعطيه الحقائق لمن عرف طريق اللّٰه فإن البلاء لا يقبل الشكر و النعمة لا تقبل الصبر فإن شكر من قام به البلاء فليس مشهوده إلا النعم فيجب عليه الشكر و إن صبر من قامت به النعماء فليس مشهوده إلا البلاء و هو ما فيها من تكليف طلب الشكر عليها من اللّٰه و ما كلفه من حكم التصرف فيها فمشهوده يقتضي له الصبر و الحق سبحانه يردف عليه النعم و هو في شهوده ينظر ما لله عليه فيها من الحقوق فيجهد نفسه في أدائها فلا يلتذ بما يحسب الناس أنه به ملتذ فيصبر على ترادف النعماء عليه فهو صاحب بلاء فليس المعتبر إلا ما يشهده الحق في وقته فهو بحسب وقته إما صاحب شكر أو صاحب صبر فهذا حال القسم الواحد من المرادين و أما القسم الآخر فلا يحس بالشدائد المعتادة بل يجعل اللّٰه فيه من القوة ما يحمل بها تلك الشدائد التي يضعف عن حملها غيرها من القوي كالرجل الكبير ذي القوة فيكلف ما يشق على الصغير أن يحمله فما عنده خبر من ذلك بل يحمله من غير مشقة فإنه تحت قوته و قدرته و يحمله الصغير بمشقة و جهد فهذا ملتذ بحمله فارح بقوته يفتخر بها لا يجد ألما و لا يحس به كما قال أبو يزيد في بعض مناجاته



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