الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

إن قال ما ذا بحكم رده علم *** من الحقيقة ردا فيه إفلاس

كذاك ذو الكم ممن فهو أجهل من *** لم يهده في ظلام الليل نبراس

و ضنة الحق أولى أن تنزهه *** عنها فليس لذاك الحكم إيناس

[أن الغيرة مشاهدة الغير إذا ثبت أن ثم غيرا و لها ثلاث مقامات]

اعلم أنه لما كانت الغيرة عند الطائفة على ثلاثة مقامات غيرة في الحق و غيرة على الحق و غيرة من الحق كان لها ثلاثة أحوال بحسب ما تنسب إليه من أجل التجانس فأما الغيرة فأصلها مشاهدة الغير إذا ثبت أن ثم غيرا فإذا ثبت صح ما قلناه عنهم من التفاصيل و أعني بثبوته عين وجود الغير لا عين معقوليته فإنه معقول بلا شك و لكن هل هو موجود العين هذا الغير المعقول أم لا فمن قال بالظاهر في المظاهر لم يقل بوجود الغير مع ثبوت حكمه و حاله المعبر عن ذلك بالغيرة و هو أثر استعداد المظاهر في الظاهر و الغير موجب الكثرة عينا أو حالا لا بد من ذلك و الكثرة معقولة بلا شك و لكن هل لها وجود عيني أم لا فيه نظر فمن قال إن هذه الكثرة الظاهرة في العين أحوال مختلفة قائمة بعين واحدة لا وجود لها إلا في تلك العين فهي نسب فلا حقيقة لها عينية في الوجود العيني و من قال إن لها أعيانا لم يقل بالعين الواحدة و لا بالظاهر في المظاهر لأن الكثير مشهود لا الكثرة فالكثرة معقولة و الكثير موجود مشهود فمن هنا ظهر حكم حال الغيرة في الأشياء و اتصف بالغيرة إلا له و الشيء لا يكون غير نفسه إلا إذا كان الشيء أشياء فيكون كل شيء غيرا للشيء الآخر و الحق ليس بأشياء فلا يقبل الغير و قد اتصف بأنه غيور و من غيرته حرم الفواحش : فتدبر ما ذكرناه حتى تعرف ما الفاحشة و ما الفعل المسمى فاحشة و غير فاحشة فالغير على الحقيقة ثابت لا ثابت هو لا هو



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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