الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 5286 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

[أنوار الرياح]

و أما أنوار الرياح فهي تجليات الاسم البعيد و هي تجليات لا ينبغي أن يذكر اسمها و لا تكون إلا لأهل الإلهام و للتجلي في أنوار الملائكة في هذا مدخل و لكن في الباطن لا في الظاهر خاصة و هم ملائكة اللمات و الإلهام خاصة و الإلقاء في هذا التجلي على النفوس و من هذا التجلي تكون الخواطر و هي رياحية كلها لأن الرياح تمر و لا تثبت فإن قال أحد بثبوتها فليست ريحا و لذلك توصف بالمرور و تسمى بالخواطر و هي من راح يروح و الرائح ما هو مقيم و أما التجلي في الأنوار الطبيعية فهو التجلي الصوري المركب فيعطي من المعارف بحسب ما ظهر فيه من الصور و هو يعم من الفلك إلى أدنى الحشرات و هو السماء و العالم فهو تجل في السماء و العالم و من هذا التجلي تعرف المعاني و اللغات و صلاة كل صورة و تسبيحها و هو كشف جليل نافع مؤيد فيه يرى المكاشف موافقة العالم و أنه ما ثم مخالفة و من هنا يرى كل شيء ﴿يُسَبِّحُ بِحَمْدِهِ﴾ [الإسراء:44] و صاحب هذا المقام يرى على الشهود صور أعماله تكون حية مسبحة لله ذات روح ينفخ فيها صاحب هذا المقام و إن كانت في ظاهر الكون مخالفة و معصية فإنها مخالفة صحيحة إلا أنها حية ناطقة تستغفر لصاحبها لأنه سوى نشأتها مخلقة و قد تمدح اللّٰه بأنه خلق فسوى و من تسوية نشأتها مخلقة إنه لم يخرجها عن كونها معصية فلو أخرجها عن كونها معصية كانت غير مخلقة و شقي صاحبها و كان تسبيحها لعنة صاحبها فإنه أباح ما حرم اللّٰه فخرج عن الايمان بذلك فلا حظ له في الإسلام إلا أن يجدد إسلامه و يتوب و هذا تنبيه لم يزل أصحابه يكتمونه غيرة منهم و ضعفا و التنبيه عليه أولى لأنها نصيحة لله و لرسوله و لأئمة المسلمين و عامتهم فلا توجد أبدا معصية مخلقة إلا من مؤمن و من أعطى الشيء خلقه فقد جرى على السنن الإلهي فإن اللّٰه ﴿أَعْطىٰ كُلَّ شَيْءٍ خَلْقَهُ﴾ [ طه:50]



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!