الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 5217 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

فاعلم أن الأرواح لها اللطافة فإذا تجسدت و ظهرت بصورة الأجسام كثفت في عين الناظر إليها و الأجسام لها الكثافة شفافها و غير شفافها فإذا تحولت في الصور في عين الرائي أو احتجبت مع الحضور فقد تروحنت أي صار لها حكم الأرواح في الاستتار و تتنوع الصور عليها كما تتنوع عليها الأعراض بحمرة الخجل و صفرة الوجل و هو انموذج منبئ أن لها قوة التحول في الصور إذا قامت بها أسباب ذلك فأما سبب كثافة الأرواح و هي من عالم اللطف فلكونهم خلقوا من الطبيعة و إن كانت أجسامهم نورية فمن نور الطبيعة كنور السراج فلهذا قبلوا الكثافة فظهروا بصور الأجسام الكثيفة كما أثر فيهم الخصام حكم الطبيعة لما فيها من التقابل و التضاد و الضد و المقابل منازع لمقابله كقول رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم فيما حكى اللّٰه عنه ﴿مٰا كٰانَ لِي مِنْ عِلْمٍ بِالْمَلَإِ الْأَعْلىٰ إِذْ يَخْتَصِمُونَ﴾ [ص:69] فوصفهم بالخصومة فمن هذه الحقيقة التي أورثتهم الخصومة تجسدوا في صور الأجسام الكثيفة و أما الكثيف يرجع لطيفا فسببه التحليل فإن الكثائف من عالم الاستحالة و كل ما يقبل الاستحالة يقبل الصور المختلفة و المتضادة و أظهر ما يكون ذلك في أهل التلحين فالصوت بما هو صوت لا تتبدل صورته فيغلظه الملحن في موضع و يرققه في موضع بحسب الرتبة التي يقصدها ليؤثر بذلك في طبيعة السامعين ما شاء من فرح و سرور و انبساط أو حزن و هم و انقباض و لهذا جعلوا ذلك في الموسيقى في أربعة في البم و الزير و المثنى و المثلث فإن المحل الذي يريدون أن تؤثر فيه هذه الأصوات مركب من مشاكلتها من مرتين و دم و بلغم فيهيج سماع هذا الصوت ما يشاكله من الأخلاط التي هو عليها السامع فيكون الحكم بسبب معين يقصده الملحن حتى يكون له ذلك سببا إلى معرفة الأصل في قوله تعالى ﴿إِنَّمٰا قَوْلُنٰا لِشَيْءٍ إِذٰا أَرَدْنٰاهُ﴾ [النحل:40] فهو قصد الملحن



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!