الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

ليس عند اللّٰه منع *** كل ما منه عطاء

فإذا ما قيل منع *** لم يكن الا عطاء

فإنا ما بين شيئين *** غطاء و وطاء

و أنا لكل ما في *** الكون من خير وعاء

[اتباع الناس عن رجل الذي رأى الحق حقا و قمع هواه]

فالرجل الذي رأى الحق حقا فاتبعه و حكم الهوى و قمعه فإذا جاع جوع اضطرار و حضر بين يديه أشهى ما يكون من الأطعمة تناول منه بعقله لا بشهوته و دفع به سلطان ضرورته ثم أمسك عن الفضل غنى نفس و شرف همة فذلك سيد الوقت فاقتد به و ذلك صورة الحق أنشأها اللّٰه صورة جسدية بعيدة المدى لا يبلغ مداها و لا يخفى طريق هداها و هذا هو طبع الأرض فهي الذلول التي لا تقبل الاستحالة فيظهر فيها أحكام الأركان و لا يظهر لها حكم في شيء تعطي جميع المنافع من ذاتها هي محل كل خير فهي أعز الأجسام لا تزاحم المتحركات بحركتها لأنها لا تفارق حيزها يظهر فيها كل ركن سلطانه و هي الصبور القابلة الثابتة الراسية سكن ميدها جبالها التي جعلها اللّٰه أوتادها لما تحركت من خشية اللّٰه آمنها اللّٰه بهذه الأوتاد فسكنت سكون الموقنين و منها تعلم أهل اليقين يقينهم فإنها الأم التي منها أخرجنا و إليها نعود و منها نخرج تارة أخرى لها التسليم و التفويض هي ألطف الأركان معنى و ما قبلت الكثافة و الظلمة و الصلابة إلا لستر ما أودع اللّٰه فيها من الكنوز لما جعل اللّٰه فيها من الغيرة فحار السعاة فيها فلم يخرقوها و لا بلغوا جبالها طولا أعطاها صفة التقديس فجعلها طهورا في أشرف الحالات و ذلك عند الاضطرار لما أقامها مقامه مثل الظمآن يرى السراب فيحسبه ماء ف‌ ﴿إِذٰا جٰاءَهُ لَمْ يَجِدْهُ شَيْئاً﴾ [النور:39] يعني ماء



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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