الفتوحات المكية

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﴿مَنٰازِلَ حَتّٰى عٰادَ كَالْعُرْجُونِ الْقَدِيمِ﴾ [يس:39] و اختصه بالذكر سدى بل ذلك لحكمة إلهية يعلمها من أوتي الحكمة التي هي الخير الكثير الإلهي فإن الستة الباقية قدرها أيضا منازل في نفس الأمر و ما حصها بالذكر فلما دخل القمر في الذكر كان له من القوة الإلهية و الشرف في الولاية و الحكم الإلهي ما ليس لغيره فإنه ما ذكر إلا بالحروف و بها نزل إلينا الذكر فكان نسبته إلى الحروف أتم من نسبة غيره فصار إمداده للحروف إمدادين إمداد جزاء و شكر لأن بها حصل له الذكر و إمدادا طبيعيا كإمداد سائر الستة لهذه الحروف و إنما ذكرنا ما يختص بالقمر دون سائر الستة لأنا في سماء الدنيا و هو موضع القمر و هو في ليلة السرار بارد رطب و في ليلة الإبدار حار رطب لما فيه من النور فهو مائي هوائي و فيما بينهما بحسب ما فيه من النور فإن النور له الشرف و لما اجتمع النار مع النور في الإحراق و قوة الفعل في بقية العناصر لهذا افتخر إبليس على آدم و تكبر عليه فإن النار لا يقبل التبريد بخلاف بقية الأركان فإن الهواء يسخن و كذلك الماء و كذلك التراب فللنار في نفس الأركان أثر ليس لواحد منها في النار أثر و كذلك الماء له أثر في الهواء و التراب فيبرد الهواء و يزيد في رطوبته و يرطب التراب و يزيد في برودتها و ليس للهواء و التراب في هذين العنصرين أثر فأقوى الأركان النار و بعده الماء فالحرارة للنار و البرودة للماء و لهذا جعلهما فاعلين و الاثنين الآخرين منفعلين رطوبة الهواء و يبوسة التراب سبحان الخبير العليم الخلاق مرتب الأمور و مقدرها لا إله إلا هو العزيز الحكيم و في ليلة تقييدي لهذا الفصل و هي الليلة الرابعة من شهر ربيع الآخر سنة سبع و عشرين و ستمائة الموافقة ليلة الأربعاء الذي هو الموفي عشرين من شباط رأيت في الواقعة ظاهر الهوية الإلهية و باطنها شهودا محققا ما رأيتها قبل ذلك في مشهد من مشاهدنا فحصل لي من مشاهدة ذلك من العلم و اللذة و الابتهاج ما لا يعرفه إلا من ذاقه فما كان أحسنها من واقعة



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