الفتوحات المكية

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[من علم الإلهي علم أنه لا يتكرر شيء في الوجود]

و من علم الاتساع الإلهي علم أنه لا يتكرر شيء في الوجود و إنما وجود الأمثال في الصور يتخيل أنها أعيان ما مضى و هي أمثالها لا أعيانها و مثل الشيء ما هو عينه و اعلم أن هذا المعقول الرابع من وجود العقل فيه تظهر العين التي تقبل حكم الطبيعة و هو الجسم الكل الذي يقبل اللطيف و الكثيف و الكدر و الشفاف و هو الذي يأتي ذكره في الفصل الثاني بعد هذا و هذا المعقول إنما قيدنا مرتبته بأنها الرابعة من حيث نظرنا إلى قبوله صورة الجسم خاصة و إنما بالنظر إلى حقيقته فليست هذه مرتبته و لا ذلك الاسم اسمه و إنما اسمه الذي يليق به الحقيقة الكلية التي هي روح كل حق و متى خلى عنها حق فليس حقا و لهذا قال عليه السّلام لكل حق حقيقة فجاء باللفظ الذي يقتضي الإحاطة إذا تعرى عن القرائن المقيدة و هو لفظة كل كمفهوم العلم و الحياة و الإرادة فهي معقولة واحدة في الحقيقة فإذا نسب إليها أمر خاص لنسبة خاصة حدث لها اسم ثم إنه إذا نسب ذلك الأمر الخاص إلى ذات معلومة الوجود و إن لم يعلم حقيقتها فنسب إليها ذلك الأمر الخاص بحسب ما تقتضيه تلك الذات المعينة فإن اتصفت تلك الذات بالقدم اتصف هذا الأمر بالقدم و إن اتصفت بالحدوث اتصف هذا الأمر بالحدوث و الأمر في نفسه لا يتصف بالوجود إذ لا عين له و لا بالعدم لأنه معقول و لا بالحدوث لأن القديم لا يقبل الاتصاف به و القديم لا يصح أن يكون محلا للحوادث و لا يوصف بالقدم لأن الحادث يقبل الاتصاف به و الحادث لا يوصف بالقديم و لا يصح أن يكون القديم حالا في المحدث فهو لا قديم و لا حادث فإذا اتصف به الحادث سمي حادثا و إذا اتصف به القديم سمي قديما و هو قديم في القديم حقيقة و حادث في المحدث حقيقة لأنه بذاته يقابل كل متصف به كالعلم يتصف به الحق و الخلق فيقال في علم الحق إنه قديم فإن الموصوف به قديم فعلمه بالمعلومات قديم لا أول له و يقال في علم الخلق إنه محدث فإن الموصوف به لم يكن ثم كان فصفته مثله إذ ما ظهر حكمها فيه إلا بعد وجود عينه فهو حادث مثله و العلم في نفسه لا يتغير عن حقيقته بالنسبة إلى نفسه و هو في كل ذات بحقيقته و عينه و ما له عين وجودية سوى عين الموصوف فهو على أصله معقول لا موجود و مثاله في الحس البياض في كل أبيض و السواد في كل أسود هذا في الألوان و كذلك في الأشكال التربيع في كل مربع و الاستدارة في كل مستدير و التثمين في كل مثمن و الشكل بذاته في كل متشكل و هو على حقيقته من المعقولية و الذي وقع عليه الحس إنما هو المتشكل لا الشكل و الشكل معقول إذ لو كان المتشكل عين الشكل لم يظهر في متشكل مثله و معلوم أن هذا المتشكل ليس هو المتشكل الآخر فهذا مثل مضروب للحقائق الكلية التي اتصف الحق و الخلق بها فهي للحق أسماء و هي للخلق أكوان فكذلك هذا المعقول الرابع لصور الطبيعة يقبل الصور بجوهره و هو على أصله في المعقولية و المدرك الصورة لا غيرها و لا تقوم الصورة إلا في هذا المعقول فما من موجود إلا و هو معقول بالنظر إلى ما ظهرت فيه صورته موجود بالنظر إلى صورته أ لا ترى الحق تعالى ما تسمى باسم و لا وصف نفسه بصفة ثبوتية إلا و الخلق يتصف بها و ينسب إلى كل موصوف بحسب ما تعطيه حقيقة الموصوف و إنما تقدمت في الحق لتقدم الحق بالوجود و تأخرت في الخلق لتاخر الخلق في الوجود فيقال في الحق إنه ذات يوصف بأنه حي عالم قادر مريد متكلم سميع بصير و يقال في الإنسان المخلوق إنه حي عالم قادر متكلم سميع بصير بلا خلاف من أحد و العلم في الحقيقة و الكلام و جميع الصفات على حقيقة واحدة في العقل ثم لا ينكر الخلاف بينهم في الحكم فإن أثر القدرة يخالف أثر غيرها من الصفات و هكذا كل صفة و العين واحدة ثم حقيقة الصفة الواحدة واحدة من حيث ذاتها ثم يختلف حدها بالنسبة إلى اختصاص الحق بها و إلى اتصاف الخلق بها و هذه الحقيقة لا تزال معقولة أبدا لا يقدر العقل على إنكارها و لا يزال حكمها موجودا ظاهرا في كل موجود



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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