الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
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(وفق مخطوطة قونية)

﴿وَ أُنْثىٰ﴾ [الحجرات:13] يريد عيسى و من المجموع من ذكر و أنثى يريد بنى آدم بطريق النكاح و التوالد فهذه الآية من جوامع الكلم و فصل الخطاب الذي أوتي محمد صلى اللّٰه عليه و سلم

[جسم آدم و جسم حواء]

و لما ظهر جسم آدم كما ذكرناه و لم تكن فيه شهوة نكاح و كان قد سبق في علم الحق إيجاد التوالد و التناسل و النكاح في هذه الدار إنما هو لبقاء النوع فاستخرج من ضلع آدم من القصيري حواء فقصرت بذلك عن درجة الرجل كما قال تعالى ﴿وَ لِلرِّجٰالِ عَلَيْهِنَّ دَرَجَةٌ﴾ [البقرة:228] فما تلحق بهم أبدا و كانت من الضلع للانحناء الذي في الضلوع لتحنو بذلك على ولدها و زوجها فحنو الرجل على المرأة حنوه على نفسه لأنها جزء منه و حنو المرأة على الرجل لكونها خلقت من الضلع و الضلع فيه انحناء و انعطاف

[حب آدم و حب حواء]

و عمر اللّٰه الموضع من آدم الذي خرجت منه حواء بالشهوة إليها إذ لا يبقى في الوجود خلاء فلما عمره بالهواء حن إليها حنينه إلى نفسه لأنها جزء منه و حنت إليه لكونه موطنها الذي نشأت فيه فحب حواء حب الموطن و حب آدم حب نفسه و لذلك يظهر حب الرجل للمرأة إذ كانت عينه و أعطيت المرأة القوة المعبر عنها بالحياء في محبة الرجل فقويت على الإخفاء لأن الموطن لا يتحد بها اتحاد آدم بها فصور في ذلك الضلع جميع ما صوره و خلقه في جسم آدم فكان نشء جسم آدم في صورته كنشء الفاخوري فيما ينشئه من الطين و الطبخ و كان نشء جسم حواء نشء النجار فيما ينحته من الصور في الخشب فلما نحتها في الضلع و أقام صورتها و سواها و عدلها نفخ فيها من روحه فقامت حية ناطقة أنثى ليجعلها محلا للزراعة و الحرث لوجود الإنبات الذي هو التناسل فسكن إليها و سكنت إليه و كانت لباسا له و كان لباسا لها قال تعالى ﴿هُنَّ لِبٰاسٌ لَكُمْ وَ أَنْتُمْ لِبٰاسٌ لَهُنَّ﴾ [البقرة:187] و سرت الشهوة منه في جميع أجزائه فطلبها



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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