الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

(منصة و مجلى)نعت المحب بأنه خارج
عن نفسه بالكلية

اعلم أن نفس الشخص الذي يتميز به عن كثير من المخلوقات إنما هو إرادته فإذا ترك إرادته لما يريد به محبوبه فقد خرج عن نفسه بالكلية فلا تصرف له فإذا أراد به محبوبه أمرا ما و علم هذا المحب ما يريده محبوبه منه أو به سارع أو تهيأ لقبول ذلك و رأى أن ذلك التهيؤ و المسارعة من سلطنة الحب الذي تحكم فيه فلم ير المحبوب في محبه من ينازعه فيما يريده به أو منه لأنه خرج له عن نفسه بالكلية فلا إرادة له معه و لكن مع وجود نفسه و طلبه الاتصال به و إن لم يكن كذلك فهو في مرتبة الجماد الذي لا إرادة له فما له لذة إلا اللذة التي متعلقها التذاذ محبوبه بما يراه منه في قبوله المحب اللّٰه أوحى اللّٰه إلى موسى يا ابن آدم خلقت الأشياء من أجلك يعني الدنيا و الآخرة لأنه العين المقصودة و هو رأس الأحباء محمد ﷺ فالكل في تسخير هذه النشأة الإنسانية الأفلاك و ما تحتوي عليه و الكواكب و ما في سيرها هذا في الدنيا و أما في الآخرة فما لا عين رأت و لا أذن سمعت و لا خطر على قلب بشر حتى نهاية الأمر و هو التجلي الإلهي يوم الزور الأعظم فهذا معنى خروج المحب عن نفسه بالكلية في كل ما يمكن أن يحتاج إليه المحبوب و ما لا حاجة للمحبوب به و لا يعود عليه منه لذة و ابتهاج فلا يدخل تحت هذا الباب

(منصة و مجلى)نعت المحب
لا يطلب الدية في قتله

لأنا قد وصفناه أولا بأنه مقتول قتل المحب شهادة فقتله حياته و الحي لا دية فيه إنما يؤدي القتيل الذي يموت فله شرعت الدية المحب اللّٰه كون العبد محبوبا إرادته نافذة لا إرادة للمحب تنازع إرادته المقتول لا إرادة له و من كان بإرادة محبوبه فلا إرادة له و إن كان مريدا و لا دية له لأن الحي لا دية فيه و الحياة الذاتية له و هو حب الفرائض إذا أداها أحبه اللّٰه ففي النوافل يكون سمع العبد و بصره و في الفرائض يكون العبد سمع الحق و بصره و لهذا ثبت العالم فإن اللّٰه لا ينظر إلى العالم إلا ببصر هذا العبد فلا يذهب العالم للمناسبة فلو نظر إلى العالم ببصره لاحترق العالم بسبحات وجهه فنظر الحق العالم ببصر الكامل المخلوق على الصورة هو عين الحجاب الذي بين العالم و بين السبحات المحرقة



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