الفتوحات المكية

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علم أنه بطن عنه وجه منفرد بلا انفراد متواتر الأحوال بحكم الأسماء أمين بالفهم قابل للزيادة موحد بالكثرة صاحب حديث قديم يعلم ما وراء الحجب من غير رفع حجاب ذو نور طامس شعاعاته محرقة و فجآت وارداته مقلقة يرد عليه ما لا يعرف متمكن في تلوينه لكون خالقه كل يوم في شأن : مجرد بكله عن السوي واقف بالحق في موطنه مريد لكل ما يراد منه ذو عناية إلهية تجذبه سالك في سكون مقيم في سفره صاحب نظرة و نظر يجد ما لا تسعه العبارة من دقائق الفهم عن اللّٰه من غير سبب مهذب الأخلاق غير قائل بالاتحاد ذاهب في كل مذهب بغير ذهاب مقدس الروح عن رعونات النفوس معلوم المراتب في البساط مؤمن بالناطق في سره مصغ إليه راغب فيما يريد به مشفق مما في باطنه مظهر خلاف ما يخفى لمصلحة وقته ولهه لا يحكم عليه غريب في الملإ الأعلى و الأسفل ذو همة فعالة مقيدة غير مطلقة غيور على الأسرار أن تذاع لا يسترقه شيء يطالع بالكوائن على طريق المشورة باستجلاء في ذلك يجده يمنعه ذلك من الانزعاج لأنه لا يقتضيه مقام الكون له جماع الخير يتحكم بالمشيئة لا بالاسم قد استوت طرفاه فازله مثل أبده تدور عليه المقامات و لا يدور عليها له يدان يقبض بهما و يبسط في عالم الغيب و الشهادة عن أمر الحق ولاية و خلافة حمال أعباء المملكة يستخرج به غيابات الأمور ينشئ خواطره أشخاصا على صورته محفوظ الأربعة فريد من النظر آله في الملكوت وقائع مشهودة و نعوت العارف أكثر من أن تحصى فهذه بعض إشارات الطائفة في حقيقة العارف و المعرفة جئنا بها لنعلم مقاصدهم في ذلك حتى لا يقول أحد عنا إنا قد انفردنا بطريق لم يسلكوا عليها بل الطريق واحدة و إن كان لكل شخص طريق تخصه فإن الطرق إلى اللّٰه تعالى على عدد أنفاس الخلائق يعني أن كل نفس طريق إلى اللّٰه و هو صحيح فعلى قدر ما يفوتك من العلم بالأنفاس و مراعاتها يفوتك من العلم بالطريق و بقدر ما يفوتك من العلم بالطرق يفوتك من غاياتها و غاية كل طريق هو اللّٰه فإنه



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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