الفتوحات المكية

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و للمعلومات وجود في الألفاظ و هو الوجود اللفظي و يدخل في هذا الوجود كل معلوم حتى المحال و العدم فإن له الوجود اللفظي فإنه يوجد في اللفظ و لا يقبل الوجود العيني أبدا أعني المحال و أما العدم فإن كان العدم الذي يوصف به الممكن فيقبل الوجود العيني و إن كان العدم الذي هو المحال فلا يقبل الوجود العيني

(و المرتبة الرابعة)الوجود الكتابي

و هو الوجود الرقمي و هو نسبته إلى الوجود في الخط أو الرقم أو الكتابة و نسبة المعلومات كلها من المحال و غير المحال نسبة واحدة فهذا المحال و إن كان لا يوجد له عين فله نسبة وجود في اللفظ و الخط فما ثم معلوم لا يتصف بالوجود بوجه و سبب ذلك قوة الوجود الذي هو أصل الأصول و هو اللّٰه تعالى إذ به ظهرت هذه المراتب و تعينت هذه الحقائق و بوجوده عرف من يقبل مراتب الوجود كلها ممن لا يقبلها فالأسماء متكلما بها كانت أو مرقومة ينسحب وجودها على كل معلوم فيتصف ذلك المعلوم بضرب من ضروب الوجود فما في العلم معدوم مطلق العدم ليس له نسبة إلى الوجود بوجه ما هذا ما لا يعقل فافهم هذا الأصل و تحققه ثم اعلم بعد هذا أن حقيقة الخيال المطلق هو المسمى بالعماء الذي هو أول ظرف قبل كينونة الحق «ورد في الصحيح أنه قيل لرسول اللّٰه ﷺ أين كان ربنا قبل أن يخلق خلقه قال كان في عماء ما فوقه هواء و ما تحته هواء» و إنما قال هذا من أجل إن العماء عند العرب هو السحاب الرقيق الذي تحته هواء و فوقه هواء فلما سماه بالعماء أزال ما يسبق إلى فهم العرب من ذلك فنفى عنه الهواء حتى يعلم أنه لا يشبهه من كل وجه فهو أول موصوف بكينونة الحق فيه فإن للحق على ما أخبر خمس كينونات كينونة في العماء و هو ما ذكرناه و كينونة في العرش و هو قوله



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