الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

و الالتحام بينهما و ما يتولد فيهما من المولدات بالليل و النهار و الفرق بين أولاد الليل و أولاد النهار فكل واحد منهما أب لما يولد في نقيضه و أم لما يولد فيه و يعلم من هذه السماء علم الغيب و الشهادة و علم الستر و التجلي و علم الحياة و الموت و اللباس و السكن و المودة و الرحمة و ما يظهر من الوجه الخاص من الاسم الظاهر في المظاهر الباطنة و من الاسم الباطن في الظاهر من حكم استعداد المظاهر فتختلف على الظاهر الأسماء لاختلاف الأعيان ثم رحلا يطلبان السماء الخامسة فنزل التابع بهارون عليه السّلام و نزل صاحب النظر بالأحمر فاعتذر الأحمر لصاحبه و نزيله في تخلفه عنه مدة اشتغاله بخدمة هارون عليه السّلام من أجل نزيله فلما دخل الأحمر على هارون وجد عنده نزيله و هو يباسطه فتعجب الأحمر من مباسطته فسأل عن ذلك فقال إنها سماء الهيبة و الخوف و الشدة و البأس و هي نعوت توجب القبض و هذا ضيف ورد من أتباع الرسول تجب كرامته و قد ورد يبتغي علما و يلتمس حكما إلهيا يستعين به على أعداء خواطره خوفا من تعدى حدود سيده فيما رسم له فاكشف له عن محياها و أباسطه حتى يكون قبوله لما التمسه على بسط نفس بروح قدس ثم رد وجهه إليه و قال له هذه سماء خلافة البشر فضعف حكم إمامها و قد كان أصلها أقوى المباني فأمر باللين بالجبابرة الطغاة فقيل لنا ﴿فَقُولاٰ لَهُ قَوْلاً لَيِّناً﴾ [ طه:44] و ما يؤمر بلين المقال إلا من قوته أعظم من قوة من أرسل إليه و بطشه أشد لكنه لما علم الحق أنه قد طبع على كل قلب مظهر للجبروت و الكبرياء و أنه في نفسه أذل الأذلاء أمرا أن يعاملاه بالرحمة و اللين لمناسبة باطنه و استنزال ظاهره من جبروته و كبريائه ﴿لَعَلَّهُ يَتَذَكَّرُ أَوْ يَخْشىٰ﴾ [ طه:44]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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