الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 4303 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

بجلاله فلما علم الحق أن هذا العبد بما كمله اللّٰه به من القوة الإلهية بالصورة الكمالية لا بد أن يدعي في نعوت ما هو حق لله لطلب الصورة الكمالية لذلك النعت و هو من بعض النعوت الإلهية فغار الحق من المشاركة في بعض نعوت الجلال و شغل الإنسان بما أباح له من باقي النعوت الإلهية فلما علم أيضا أنه لا يقف عند ذلك و أنه لا بد أن يعطي الصورة الكمالية حقها في الاتصاف بالنعوت الإلهية و إنها تتعدى ما حجر عليها مثل العظمة و الكبرياء و الجبروت «فقال الكبرياء ردائي و العظمة إزاري من نازعني واحدا منهما قصمته» و قال ﴿كَذٰلِكَ يَطْبَعُ اللّٰهُ عَلىٰ كُلِّ قَلْبِ مُتَكَبِّرٍ جَبّٰارٍ﴾ [غافر:35] فهذا هو عين الغيرة غار على هذه النعوت أن تكون لغير اللّٰه فحجرها و كذلك تحجرت على الحقيقة بقوله ﴿كَذٰلِكَ يَطْبَعُ اللّٰهُ عَلىٰ كُلِّ قَلْبِ مُتَكَبِّرٍ جَبّٰارٍ﴾ [غافر:35] فلا يدخل مع هذا الطابع قلب كون من الأكوان تكبر على اللّٰه و لا جبروت لأجل هذا الطبع

[معنى الطابع الذي طبع اللّٰه على قلب المتكبر الجبار]

فعلم كل من أظهر من المخلوقين دعوى الألوهية كفرعون و غيره و تكبر و تجبر كل ذلك في ظاهر الكون و هذا الذي ظهرت منه صفة الكبرياء مطبوع على قلبه إن يدخل فيه الكبرياء على اللّٰه فإنه يعلم من نفسه افتقاره و حاجته و قيام الآلام به من ألم جوع و عطش و هواء و مرض التي لا تخلو هذه النشأة الحيوانية عنه في هذه الدار و تعذر بعض الأغراض أن تنال مرادها و تألمه لذلك و من هذه صفته من المحال أن يتكبر في نفسه على ربه فهذا معنى الطابع الذي طبع اللّٰه على قلب المتكبر الذي يظهر لكم به من الدعوى الجبار يجبركم على ما يريد فمنكم المطيع و المخالف و لو هلك بمخالفته و لهذا يرجى حكم السعادة في المال و لو بعد حين فإن القلوب ما يدخلها كبرياء على اللّٰه لكن يدخلها بعضهم على بعض قال تعالى ﴿لَخَلْقُ السَّمٰاوٰاتِ وَ الْأَرْضِ أَكْبَرُ مِنْ خَلْقِ النّٰاسِ﴾ [غافر:57]



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!