الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

﴿وَ لَنَبْلُوَنَّكُمْ حَتّٰى نَعْلَمَ﴾ [محمد:31] و هو العليم فانسهم و فيه حكم إيمان يعتض به من يسمع ممن لا يعرف اللّٰه قولهم إن اللّٰه لا يعلم الجزئيات و إن كانوا قصدوا بذلك التنزيه و هذه مسألة لا يمكن تحققها بالعقل ما لم يكن الكشف بكيفية تعلق العلم الإلهي بالمعلومات و أنه ليس في حق الحق ماض و لا آت و أن آنه لم يزل و لا يزال لا يتصف آنه بأنه لم يكن ثم كان و لا بانقضاء بعد ما كان و ربما يعطي اللّٰه هذه القوة لمن شاء من عباده و قد ظهر منها نفحة على محمد صلى اللّٰه عليه و سلم علم بها علم الأولين و الآخرين فعلم الماضي و المستقبل في الآن فلو لا حضور المعلومات له في حضرة الآن لما وصف بالعلم بها فهذا يعلم أن اللّٰه يعلم الجزئيات علما صحيحا غاب عنه من قصد التنزيه بنفيه عن جناب الحق

[المجاهدة حمل النفس على المشاق و الرياضة تهذيب الأخلاق]

ثم نرجع و نقول إن المجاهدة حمل النفس على المشاق البدنية المؤثرة في المزاج و هنا و ضعفا كما إن الرياضة تهذيب الأخلاق النفسية بحملها على احتمال الأذى في العرض و الخارج عن بدنه مما لا حركة فيه بدنية ثم إن هذه الحركات البدنية المحمودة شرعا منها حركات في سبيل اللّٰه مطلقا و هي أنواع سبيل كل بر مشروع فمنه ما فيه مشقة فيسمى مجاهدة و منه ما لا مشقة فيه فيرتفع عنها حكم هذا الاسم

[أعظم المشاق إتلاف المهج في سبيل الخلاق]

و هذا الباب مخصوص بما فيه مشقة و لهذا سميناه باب المجاهدة فنظرنا إلى أعظم المشاق فلم نجد أعظم من إتلاف المهج في سبيل اللّٰه و هو الجهاد في سبيل اللّٰه الذي وصف اللّٰه قتلاه بأنهم أحياء يرزقون و نهى أن يقال فيهم أموات و نفى العلم عمن يلحقهم بالأموات : للمشاركة في صورة مفارقة الإحساس و عدم وجود الأنفاس



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