الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 3666 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

انتهى الجزء السادس و الثمانون (بسم اللّٰه الرحمن الرحيم)

(السؤال السادس و الثمانون)على كم سهم ثبتت العبودية

الجواب على تسعة و تسعين سهما على عدد الأسماء الإلهية التي من أحصاها دخل الجنة لكل اسم إلهي عبودية تخصه بها يتعبد له من يتعبد من المخلوقين و لهذا لا يعلم هذه الأسماء الإلهية إلا ولي ثابت الولاية فإن رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم ما ثبت عندنا أنه عينها و قد يحصيها بعض الناس و لا يعلم أنها هي التي ورد فيها النص كما يكون وليا و لا يعلم أنه ولي و من رجال اللّٰه من عرفهم اللّٰه بها من أجل ما يطلبه كل اسم منها من عبودية هذا العبد فيعين له هذا الولي العارف من العبودية بحسب الاسم الذي له الحكم عليه في وقته

[إحصاء الأسماء الإلهية و دخول الجنة المعنوية و الحسية]

فمن أحصى هذه الأسماء الإلهية دخل الجنة المعنوية و الحسية فأما المعنوية فبما ذا تطلبه هذه الأسماء من العلم بالعبودية التي تليق بها و أما الحسية فبما ذا تطلبه هذه الأسماء من الأعمال التي تطلبه من العباد فلا بد من تمييزها و كيف يعرف اسم لعبودية من لا يعلم من اللّٰه ما يطلبه منه فبهذا النظر يكون للعبودية سهام و يكون عددها ما ذكرناه

[العاملون بالعبودية رجلان]

و العاملون بهذه العبودية رجلان رجل يعمل بها من حيث شرعه و من عمل بها من حيث شرعه فقد عمل بها من حيث عقله و رجل عمل بها من حيث عقله و من عمل بها من حيث عقله قد لا يعمل بها من حيث شرعه فالعامل بها من حيث عقله ينسبها إلى هياكل منورة أو عقول مجردة عن المواد لا بد من ذلك و العامل بها من حيث شرعه ينسبها إلى اللّٰه سبحانه و ينسبها من حيث آثارها و ما تنظر إليه لوضع الوسائط بينك و بينها إلى الهياكل النورية و العقول المجردة عن المواد و أما العامة فلا يعرفونها إلا لله خاصة أو للأسباب القريبة المعتادة المحسوسة خاصة لا يعلمون غير هذا

[الوقوف مع الرب على قدم العبودية المحضة]

و ما رأيت و لا سمعت عن أحد من المقربين أنه وقف مع ربه على قدم العبودة المحضة فالملأ الأعلى يقول



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!