الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

(السؤال الرابع و الستون)ما كلامه للموحدين

الجواب يقول لهم فيما ذا وحدتموني و بما ذا وحدتموني و ما الذي اقتضى لكم توحيدي

[انتفاء ادعاء التوحيد بأى وجه أو في أي وجه]

فإن كنتم وحدتموني في المظاهر فأنتم القائلون بالحلول و القائلون بالحلول غير موحدين لأنه أثبت أمرين حال و محل و إن كنتم وحدتموني في الذات دون الصفات و الأفعال فما وحدتموني فإن العقول لا تبلغ إليها و الخبر من عندي فما جاءكم بها و إن كنتم وحدتموني في الألوهة بما تحمله من الصفات الفعلية و الذاتية من كونها عينا واحدة مختلفة النسب فبما ذا وحدتموني هل بعقولكم أو بي و كيفما كان فما وحدتموني لأن وحدانيتي ما هي بتوحيد موحد لا بعقولكم و لا بى فإن توحيدكم إياي بي هو توحيدي لا توحيدكم و بعقولكم كيف يحكم علي بأمر من خلفته و نصبته

[اقتضاءات التوحيد]

و بعد أن ادعيتم توحيدي بأي وجه كان أو في أي وجه كان فما الذي اقتضى لكم توحيدي إن كان اقتضاه وجودكم فأنتم تحت حكم ما اقتضاه منكم فقد خرجتم عني فأين التوحيد و إن كان اقتضاه أمري فأمري ما هو غيري فعلى يدي من وصلكم إن رأيتموه مني فمن الذي رآه منكم و إن لم تروه مني فأين التوحيد يا أيها الموحدون كيف يصح لكم هذا المقام و أنتم المظاهر لعيني و أنا الظاهر و الظاهر يناقض الهوية فأين التوحيد لا توحيد في المعلومات فإن المعلومات أنا و أعيانكم و المحالات و النسب فلا توحيد في المعلومات فإن قلتم في الوجود فلا توحيد فإن الوجود عين كل موجود و اختلاف المظاهر يدل على اختلاف وجود الظاهر فنسبة عالم ما هي نسبة جاهل و لا نسبة متعلم فأين التوحيد و ما ثم إلا المعلومات أو الموجودات



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