الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

«قال رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم فيما وصف ربه به مما أوحى إليه به أنه لا شيء أحب إلى اللّٰه تعالى من أن يمدح» و لا مدحة فوق المدحة بمثل هذا ثم إن اللّٰه خلق آدم على صورته فلا شيء أحب إلى العبد من أن يمدح و يثنى عليه و أسنى ما يمدح به العبد العلم بالله و علمه بالقدر علمه بالله فلو فتح للعبد الإنساني العلم بالقدر و قد أمر بالغيرة فيه و طيه عمن لا ينبغي أن يظهر عليه و كان الإنسان و هو مجبول على حب المدح و الرسالة تعطي الرغبة في هداية الخلق أجمعين و لا طريق للهداية أوضح من هذا الفن فالذي كانوا يلقونه من الكتم من الألم و العذاب في أنفسهم لا يقدر قدره فخفف اللّٰه عن الرسل مثل هذا الألم فطواه عنهم فإن جميع العالم ممن له قوة على إيصال ما في نفسه من الأمور إلى الخلق يكتمون علم مثل هذا و غيره إذا كان عندهم إلا الجن و الإنس فإن النشأة من هذه القوي العنصرية تقتضي لهم ذلك فمن كتم منهم فإنما يكتم على كره مما ينبغي أن يمدح به إذا بثه و لو لا إن البهائم لم تعط لها قوة التوصيل لأعلمت بما تشاهده من الأمور الغيبية التي أمر اللّٰه من يعلمها بسترها مثل خوار الميت على نعشه و عذاب القبر و حياة الشهداء فكل دابة تسمعه و تصغي يوم الجمعة شفقا من الساعة و لكن لما كوشفت على مثل هذا أعطيت الخرس عن التوصيل فكتمها الأشياء اضطراري لا اختياري فطواه اللّٰه عن الثقلين لذلك فإنه من الأسرار المكتومة فهذا من الأسباب التي طوى لها علم القدر

(السؤال الخامس و الثلاثون)متى ينكشف لهم سر القدر

الجواب سر القدر غير القدر و سره عين تحكمه في الخلائق و إنه لا ينكشف لهم هذا السر حتى يكون الحق بصرهم فإذا كان بصرهم بصر الحق و نظروا للأشياء ببصر الحق حينئذ انكشف لهم علم ما جهلوه إذ كان بصر الحق لا يخفى عليه شيء



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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