الفتوحات المكية

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فالسبب الذي لأجله طوى علم القدر هو أن له نسبة إلى ذات الحق و نسبة إلى المقادير فعز أن يعلم عز الذات و عز أن يجهل لنسبة المقادير فهو المعلوم المجهول فأعطى التكليف في العالم فاشتغل العالم بما كلفوا و نهوا عن طلب العلم بالقدر و لا يعلم إلا بتقريب الحق و شهوده شهودا خاصا لعلم هذا المسمى قدرا فأولياء اللّٰه و عباده لا يطلبون علمه للنهي الوارد عن طلبه فمن عصى اللّٰه و طلبه من اللّٰه و هو لا يعلم بالنظر الفكري فلم يبق إلا أن يعلم بطريق الكشف الإلهي و الحق لا يقرب من عصاه بمعصيته و طالب هذا العلم قد عصاه في طلبه فلا ينال من طريق الكشف و ما ثم طريق آخر يعلم به علم القدر فلهذا كان مطويا عن الرسل فمن دونهم و إن نزع أحد إلى أن السائل اعتبر بسؤاله معنى الرسالة فمن حيث إنهم رسل طوى عنهم في هذه المرتبة و من دونهم من أرسل إليهم و ذلك هو التكليف فسد اللّٰه باب العلم بالقدر في حال الرسالة فإن علموه فما علموه من كونهم رسلا بل من كونهم من الراسخين في العلم فقد ينال على هذا لو لا ما بيناه من أن مرتبته بين الذات و المظاهر فمن علم اللّٰه علم القدر و من جهل اللّٰه جهل القدر و اللّٰه سبحانه مجهول فالقدر مجهول فمن المحال أن يعرف المألوه اللّٰه لأنه لا ذوق له في الألوهة فإنه مألوه و لله ذوق في المألوهية لكونه يطلبها في المألوه كما يطلبه المألوه فمن هناك وصف الحق نفسه بما وصف به مظاهره من التعجب و الضحك و النسيان و جميع الأوصاف التي لا تليق إلا بالممكنات

[سر القدر عين تحكمه في المقادير كما الوزن متحكم في الموزون]

فسر القدر عين تحكمه في المقادير كما إن الوزن متحكم في الموزون و الميزان نسبة رابطة بين الموزون و الوزن بها يتعين مقدار الموزون و مقادير الموزونات على اختلافها فالحق وضع الميزان و قال



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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