الفتوحات المكية

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فأثنى عليه بالإنابة و قال فيه ﴿إِنَّهُ أَوّٰابٌ﴾ [ص:17] ! فذكره بالأوبة فهؤلاء الأصناف لا بد من ذكرهم في هذا الباب ليقع عند السامع تعيين هذه الصفة و منزلة هذا الموصوف بها و كذلك أولو النهى و أولو الأحلام و أولو الألباب و أولو الأبصار فما نعتهم اللّٰه بهذه النعوت سدى و المتصفون بهذه الأوصاف قد طالبهم الحق بما تقتضيه هذه الصفات و ما تثمر لهم من المنازل عند اللّٰه فإن هذا الباب باب شريف من أشرف أبواب هذا الكتاب يتضمن ذكر الرجال و علوم الأولياء و نحن نستوفيها إن شاء اللّٰه أو نقارب استيفاء ذلك على القدر الذي رسم لنا و عينه الحق تعالى في واقعتنا فإن المبشرات هي التي أبقى اللّٰه لنا من آثار النبوة التي سد بابها و قطع أسبابها فقذف به في قلوبنا و نفث به الروح المؤيد القدسي في نفوسنا و هو الإلهام الإلهي و العلم اللدني نتيجة الرحمة التي أعطاها اللّٰه من عنده من شاء من عباده

[أولياء اللّٰه الذين لا خوف عليهم و لا هم يحزنون]

فمنهم رضي اللّٰه عنهم الأولياء قال تعالى ﴿أَلاٰ إِنَّ أَوْلِيٰاءَ اللّٰهِ لاٰ خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَ لاٰ هُمْ يَحْزَنُونَ﴾ [يونس:62] مطلقا و لم يقل في الآخرة فالولي من كان على بينة من ربه في حاله فعرف ما له بأخبار الحق إياه على الوجه الذي يقع به التصديق عنده و بشارته حق و قوله صدق و حكمه فصل فالقطع حاصل فالمراد بالولي من حصلت له البشرى من اللّٰه كما قال تعالى ﴿لَهُمُ الْبُشْرىٰ فِي الْحَيٰاةِ الدُّنْيٰا وَ فِي الْآخِرَةِ لاٰ تَبْدِيلَ لِكَلِمٰاتِ اللّٰهِ ذٰلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ﴾ [يونس:64] و أي خوف و حزن يبقى مع البشرى بالخير الذي لا يدخله تأويل فهذا هو الذي أريد بالولي في هذه الآية ثم إن أهل الولاية على أقسام كثيرة فإنها أعم فلك إحاطي فنذكر أهلها من البشر إن شاء اللّٰه و هم الأصناف الذين نذكرهم مضافا إلى ما تقدم في هذا الباب من ذكرهم ممن حصرتهم الأعداد و من لا يحصرهم عدد انتهى الجزء السابع و السبعون



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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