الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

﴿وَ مٰا كٰانَ لِبَشَرٍ أَنْ يُكَلِّمَهُ اللّٰهُ إِلاّٰ وَحْياً أَوْ مِنْ وَرٰاءِ حِجٰابٍ﴾ [الشورى:51] و هذا الصنف على طبقات كثيرة و الصنف الآخر تحدثهم الأرواح الملكية في قلوبهم و أحيانا على آذانهم و قد يكتب لهم و هم كلهم أهل حديث فالصنف الذي تحدثه الأرواح الطريق إليه بالرياضات النفسية و المجاهدات البدنية بأي وجه كان و من كان فإن النفوس إذا صفت من كدر الوقوف مع الطبع التحقت بعالمها المناسب لها فأدركت ما أدركت الأرواح العلى من علوم الملكوت و الأسرار و انتقش فيها جميع ما في العالم من المعاني و حصلت من الغيوب بحسب الصنف الروحاني المناسب لها فإن الأرواح و إن جمعهم أمر واحد فلكل روح مقام معلوم فهم على درجات و طبقات فمنهم الكبير و الأكبر كجبريل و إن كان من أكابرهم فميكائيل أكبر منه و منصبه فوق منصبه و إسرافيل أكبر من ميكائيل و جبريل أكبر من إسماعيل فالذي على قلب إسرافيل منه يأتي الإمداد إليه و هو أعلى من الذين هم على قلب ميكائيل فكل محدث من هؤلاء يحدثهم الروح المناسب لهم و كم من محدث لا يعلم من يحدثه فهذا من آثار صفاء النفوس و تخليصها من الوقوف مع الطبع و ارتفاعها عن تأثير العناصر و الأركان فيها فهي نفس فوق مزاج بدنها وقع قوم بهذا القدر من الحديث و لكن ما هو شرط في السعادة الإيمانية في الدار الآخرة لأنه تخليص نفسي فإن كان هذا المحدث أتى جميع هذه الصفات التي أوجبت له التخليص من الطبع بالطريقة المشروعة و الاتباع النبوي و الايمان الجزم اقترنت بالحديث السعادة فإن انضاف إلى ذلك الحديث الحديث مع الرب من الرب تعالى إليهم كان من الصنف الأول الذي ذكرنا أنه على طبقات في الحديث قال بعضهم

يا مؤنسي بالليل إن هجع الورى *** و محدثي من بينهم بنهار

فذكر هذا القائل أن حديثه مع اللّٰه و حديث اللّٰه معه إنه من بينيتهم لا أنه كلمه على ألسنتهم قال تعالى



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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