الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

﴿وَ أَقْرِضُوا اللّٰهَ قَرْضاً حَسَناً﴾ [الحديد:18] و في «قوله جعت فلم تطعمني» فإذا فهمت الصفة التي أوجبت السؤال عرفت كيف تسأل و ممن تسأل و ما تسأل و بيد من تقع الأعطية و ما يصنع بها و تعلم رفع الأيدي عند السؤال بالظهور و بالبطون و ما الفرق في أحوالهما

(الحديث الأربعون حديث الاستغفار للمحلقين و المقصرين)

«خرج مسلم عن أبي هريرة قال قال رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم اللهم اغفر للمحلقين قالوا يا رسول اللّٰه و للمقصرين قال اللهم اغفر للمحلقين قالوا يا رسول اللّٰه و للمقصرين قال و للمقصرين»

[مقصود الشارع بطلب الغفر]

لما لم يفهموا مقصود الشارع بطلب الغفر الذي هو الستر للمحلقين و هم الذين حسروا عن رءوسهم الشعر فانكشفت رءوسهم فطلب من اللّٰه سترها ثوابا لكشفها و المقصر ليس له ذلك فلما لم يفهموا عنه قال و للمقصرين خطابا لهم إذ قد قال صلى اللّٰه عليه و سلم خاطبوا الناس على قدر عقولهم أي على قدر ما يعقلونه من الخطاب حتى لا يرموا به

(الحديث الحادي و الأربعون حديث طواف الوداع)

«خرج مسلم عن ابن عباس قال كان الناس ينصرفون في كل وجه فقال رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم لا ينفرن أحد حتى يكون آخر عهده بالبيت»

[الأول يطلب الآخر في عالم المفارقة]

لما كان هذا البيت أول مقصود الحاج لأنه ما أمر بالحج إلا إلى البيت و الأول يطلب الآخر في عالم المفارقة و ليس من شرطه في كل منسوب إليه الأولية بخلاف الآخر فإنه يطلب الأول بذاته لا بد من ذلك فافهم حتى تعرف إذا نسبت إليك الأولية كيف تنسبها و إذا نسبت إليك الآخرية كيف تنسبها فإذا علمت أن الآخر يطلب الأول في عالم المفارقة و أنت من عالم حاله المفارقة لأنك آفاقي تعين عليك أن يكون آخر عهدك الطواف بالبيت

(فصل في كفارة التمتع)

قال تعالى



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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