الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

﴿أَبىٰ وَ اسْتَكْبَرَ﴾ [البقرة:34]

[الدلالة على إزالة الكبرياء في شيطنة البدن]

و جعل صلى اللّٰه عليه و سلم الدلالة على إزالة الكبرياء في شيطنة البدن جعل النعال في أرقابها إذ لا يصفع بالنعال إلا أهل الهون و الذلة و من كان بهذه المثابة فما بقي فيه كبرياء يشهد و علق النعال في قلائد من عهن و هو الصوف ليتذكر بذلك ما أراد اللّٰه بقوله ﴿وَ تَكُونُ الْجِبٰالُ كَالْعِهْنِ﴾ [ المعارج:9] فإذا كانت هذه صفته كان قربانا من التقريب إلى اللّٰه فحصلت له القربة بعد ما كان موصوفا بالبعد إذ كان شيطانا فإذا كانت الشياطين قد أصابتهم الرحمة فما ظنك بأهل الإسلام

[بعث النبي إلى الموحدين و إلى المشركين بوجهين]

ثم إن النبي صلى اللّٰه عليه و سلم أيضا بعث إلى الموحدين ليشهدوا بتوحيدهم على جهة القربة التي لا يستقل العقل بإدراكها أعني بإدراك هذه القربة إلا من جهة الشرع فيحقق بعثه إلى المشرك و الموحد بوجهين فالمشرك و هو الشيطان المتكبر دعاه إلى عين القربة كما ذكرناه فقبل قربة و زال عنه بما ذكرناه من الإشعار و تقليد النعال ما كان فيه من صفة البعد

[مثل تقريب الموحدين]

ثم نبه صلى اللّٰه عليه و سلم على مقام دعوته للموحدين حيث دعاهم إلى النطق بها قربة و لم يكن لهم علم بذلك فاهدى مرة إلى البيت غنما و هي من الحيوان الطاهر الذي تجوز لنا الصلاة في مرابضها فكان مثل تقريب الموحدين «خرج مسلم عن عائشة قالت أهدى رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم إلى البيت غنما فقلدها» و التقليد للغنم أي هذه صفتها التي أوجبت لها القرب أن تكون قربانا

(حديث سادس و ثلاثون يوم النحر هو يوم الحج الأكبر)



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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