الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

«فقال لنا قولوا اللهم صل على محمد و على آل محمد و المؤمنون آله كما صليت على إبراهيم» و ما اختص به إلا الخلة فلما دعونا بها لرسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم أجاب اللّٰه دعاءنا فيه لنتخذ عنده يدا بذلك فصلى اللّٰه عنه علينا بذلك عشرا فقام تعالى عن نبيه صلى اللّٰه عليه و سلم بالمكافاة عناية منه به عليه السلام و تشريفا لنا حيث لم تكمل المكافاة في ذلك لملك و لا غيره «فقال النبي صلى اللّٰه عليه و سلم عند ذلك لما حصلت الإجابة من اللّٰه فيما دعوناه فيه لنبيه صلى اللّٰه عليه و سلم لو كنت متخذا خليلا لاتخذت أبا بكر خليلا و لكن صاحبكم يعني نفسه خليل اللّٰه» و لو صحت له هذه الخلة من قبل دعاء أمته له بذلك لكان غير مفيد صلاتنا عليه أي دعاءنا له بذلك فإن قيل قد حصلت الخلة بدعاء الصحابة أو لا فما فائدة دعائنا و نحن مأمورون في هذا الوقت بالصلاة عليه مع حصول الخلة فهكذا حكم الأول فربما نال الخلة قبل دعاء أصحابه و تكون نسبة دعائهم بها له كدعائنا اليوم قلنا حكم الخلة ما ظهر هنا و إنما يظهر ذلك في الآخرة و الحكم للمعنى لا يكون إلا بعد حصول المعنى فمتى قام المعنى بمحل وجب حكمه لذلك المحل ففي الآخرة تنال الخلة لظهور حكمها هناك و أما الذي يظهر هنا منها لوامع تبدو و تؤذن بأنه قد أهل لها و اعتنى به هذا هو الصحيح و الجواب الأول أن لكل نفس منا حظا من محمد صلى اللّٰه عليه و سلم و هو الصورة التي في باطنه أعني في باطن كل إنسان منه صلى اللّٰه عليه و سلم فهو في كل نفس بصورة ما يعتقد فيه كل شخص فيدعو له بالصلاة عليه المذكورة صلى اللّٰه عليه و سلم فتنال تلك الصورة المحمدية التي عنده تلك الحال المدعو بها بدعائه و الصلاة عليه فما حصلت له الخلة من هذا الوجه إلا بعد دعاء كل نفس و هكذا يجده أهل اللّٰه في كشفهم فاعلم ذلك



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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