الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 3093 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

فدلائل الجمرة الأولى لمعرفة الذات و لهذا نقف عندها لغموضها إشارة إلى الثبات فيها و هي ما يتعلق بها من السلوب إذ لا يصح أن يعرف بطريق إثبات صفة معينة و لا يصح أن يكون لها صفات نفسية متعددة بل صفة نفسه عينه لا أمر آخر فلا بد أن تكون صفته النفسية الثبوتية واحدة و هي عينه لا غير فهو مجهول العين معلوم بالافتقار إليه و هذه هي معرفة أحديته تعالى فيأتي خاطر الشبهة بالإمكان إلى هذه الذات فيرميه بحصاة الافتقار إلى المرجح و هو واجب الوجود لنفسه و يأتي بصورة الدليل على ما يعطيه نظمه في موازين العقول فهذه حصاة واحدة من الجمرة الأولى فإذا رماه بها مكبرا أي يكبر عن هذه النسبة الإمكانية إليه فيأتيه في الثانية بأنه جوهر فيرميه بالحصاة الثانية و هو دليل الافتقار إلى التحيز أو إلى الوجود بالغير فيأتيه بالجسمية فيرميه بحصاة الافتقار إلى الأداة و التركيب و الأبعاد فيأتيه بالعرضية فيرميه بحصاة الافتقار إلى المحل و الحدوث بعد أن لم يكن فيأتيه بالعلية فيرميه بالحصاة الخامسة و هي دليل مساوقة المعلول له في الوجود و هو كان و لا شيء معه فيأتيه في الطبيعة فيرميه بالحصاة السادسة و هي دليل نسبة الكثرة إليه و افتقار كل واحد من آحاد الطبيعة إلى الأمر الآخر في الاجتماع به إلى إيجاد الأجسام الطبيعية فإن الطبيعة مجموع فاعلين و منفعلين حرارة و برودة و رطوبة و يبوسة و لا يصح اجتماعها لذاتها و لا افتراقها لذاتها و لا وجود لها إلا في عين الحار و البارد و الرطب و اليابس فيأتيه في العدم و هو أن يقول له إذا لم يكن هذا و لا هذا و يعدد ما تقدم فما ثم شيء فيرميه بالحصاة السابعة و هي دليل آثاره في الممكن و العدم لا أثر له و قد ثبت بدليل افتقار الممكن في وجوده إلى مرجح و وجود موجود واجب الوجود لنفسه و هو هذا الذي أثبتناه مرجحا و انقضت الجمرة الأولى

[دلائل الجمرة الثانية لمعرفة حضرة الصفات]



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!