الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 304 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

و ﴿هُوَ الَّذِي فِي السَّمٰاءِ إِلٰهٌ وَ فِي الْأَرْضِ إِلٰهٌ﴾ [الزخرف:84] و كل آية أو خبر تثبت له جل و علا الجهة و التحديد و المقدار و الكمال و الأكمل فيه على قدر الاستعداد و التأهب و إن كان سبعة و هو الزاي بالجزمين و العين و الذال بالصغير جعلت الذي منك صفاتك و قابلت بها صفاته و بما في الزاي من الصغير يبرز من أسرار قبولك و بما فيه و في العين و الذال من الكبير تبرز وجوه من المطلوب المقابل و في هذا التجلي يعلم المكاشف أسرار المسبعات كلها حيث وقعت و الكمال و الأكمل فيه على قدر الاستعداد و التأهب و إن كان ثمانية الذي هو الحاء بالجزمين و الفاء في قول و الصاد في قول و الضاد في قول و الظاء في قول جعلت الحاء منك ذاتك بما فيها و قابلت بها الحضرة الإلهية مقابلة الصورة صورة المرآة و بما في الحاء من الصغير يبرز من أسرار قبولك و بما فيه و في الفاء و الظاء أو الضاد من الكبير تبرز وجوه من المطلوب المقابل و في هذا التجلي يعلم المكاشف أسرار أبواب الجنة الثمانية و فتحها لمن شاء اللّٰه هنا و كل حضرة مثمنة في الوجود و الكمال و الأكمل بحسب الاستعداد و إن كان تسعة و هو الطاء بالجزمين و الضاد أو الصاد في قول و في المئين الظاء أو الغين في قول بالجزم الصغير جعلت الطاء منك مراتبك في الوجود التي أنت عليها في وقت نظرك في هذا التجلي و قابلت بها مراتب الحضرة و هو الأبد لها و لك و بما في الطاء من الصغير يبرز من أسرار القبول و بما فيه و في الضاد أو الصاد و الغين أو الظاء من الكبير تبرز وجوه من المطلوب المقابل و في هذا التجلي يعلم المكاشف أسرار المنازل و المقامات الروحانية و أسرار الأحدية و الكامل و الأكمل على حسب الاستعداد فهذا وجه من الوجوه التي سقنا عدد الحرف من أجله فاعمل عليه و إن كان ثم وجوه أخر فليتك لو عملت على هذا و هو المفتاح الأول و من هنا تنفتح لك أسرار الأعداد و أرواحها و منازلها فإن العدد سر من أسرار اللّٰه في الوجود ظهر في الحضرة الإلهية بالقوة



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!