الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 2951 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

(وصل في فصل صيد البر إذا صاده الحلال هل يأكل منه المحرم أم لا)

فمن قائل يجوز له أكله على الإطلاق و من قائل هو محرم عليه على الإطلاق و من قائل إن لم يصد من أجله و لا من أجل قوم محرمين جاز أكله و إن صيد من أجل محرم فهو حرام على المحرم و أما مذهبنا في هذا فلم ينقدح لي فيه شيء و لا نرجح عندي فيه دليل إلا أنه يغلب على ظني الخبر الصحيح الوارد أنه إذا لم يكن للمحرم فيه تعمل فله أكله و ترجح أحد احتمالي لفظة الصيد المحرم في الآية لأن الصيد المذكور قد يراد به الفعل و قد يراد به المصيد و لا أدري أي ذلك أراد الحق تعالى أو أراد الأمرين جميعا الفعل و المصيد فمن يرى أنه الفعل لا المصيد فيقول بجواز أكله على الإطلاق و لا معنى لقول من يقول إن صيد من أجله لأني ما خوطبت بنية غيري فإن أمرت أنا الحلال أو أشرت إليه أو نبهته أو أومأت إليه في ذلك أو أعنته بشيء فلي فيه تعمل فيحرم على ذلك و أنا آثم فيه و هذا القول و إن كنت لم أره لغيري و لكن هو من محتملات القول الثالث و هو قوله إن لم يصد من أجله قد يريد بإشارته أو دلالته و قد يريد أن الحلال نوى أن يصيد ما يأكله المحرم

[الحلال لا تحجير عليه في تصرفه]

الحلال لا تحجير عليه في تصرفه فأشبه الحق في هذه الصفة فإن رفع التحجير تنزيه عن التقييد فهي صفة إلهية و ليس لأحد أن يمتنع بتقييده عن تصريف الحق له إذ كان تقييده من تصريفه فله قبول ما يصرفه فيه كما قبل تقييده لا فرق فهذه عبودية محضة خالصة حيث رآها في الحلال من كونه غير محجور عليه ما حجر على المحرم أعني رأى الصفة الإلهية التي ليس من شأنها أن تقبل الاحتجار بل هو الفعال لما يريد كما أنه تعالى أشبه المقيد المحرم في أمور أوجبها على نفسه لعباده في غير موضع كما قال



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!