الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

علمنا إن الصوفية أضياف اللّٰه فإنهم سافروا من حظوظ أنفسهم و جميع الأكوان إيثارا للجناب الإلهي فنزلوا به فلا يعملون عملا إلا بإذن من نزلوا عليه و هو اللّٰه فلا يتصرفون و لا يسكنون و لا يتحركون إلا عن أمر إلهي و من ليست له هذه الصفة فهو في الطريق يمشي يقطع مناهل نفسه حتى يصل إلى ربه فحينئذ يصح أن يكون ضيفا و إذا أقام عنده و لا يرجع كان أهلا لأن أهل القرآن و هو الجمع به تعالى هم أهل اللّٰه و خاصته

(حكاية)

كان شيخنا أبو مدين بالمغرب قد ترك الحرفة و جلس مع اللّٰه على ما يفتح اللّٰه له و كان على طريقة عجيبة مع اللّٰه في ذلك الجلوس فإنه ما كان يرد شيئا يؤتى إليه به مثل الإمام عبد القادر الجيلي سواء غير أن عبد القادر كان أنهض في الظاهر لما يعطيه الشرف فقيل له يا أبا مدين لم لا تحترف أو لم لا تقول بالحرفة فقال أقول بها فقيل له فلم لا تحترف فقال الضيف عندكم إذا نزل بقوم و عزم على الإقامة كم توقيت زمان وجوب ضيافته عليهم قالوا ثلاثة أيام قال و بعد الثلاثة الأيام قالوا يحترف و لا يقعد عندهم حتى يحرجهم قال الشيخ اللّٰه أكبر أنصفونا نحن أضياف ربنا تبارك و تعالى نزلنا عليه في حضرته على وجه الإقامة عنده إلى الأبد فتعينت الضيافة فإنه تعالى ما دل على كريم خلق لعبده إلا كان هو أولى بالاتصاف به قالوا نعم قال و أيام ربنا كما قال كل يوم ﴿كَأَلْفِ سَنَةٍ مِمّٰا تَعُدُّونَ﴾ [الحج:47] فضيافته بحسب أيامه فإذا أقمنا عنده ثلاثة آلاف سنة و انقضت و لا نحترف يتوجه اعتراضكم علينا و نحن نموت و تنقضي الدنيا و يبقى لنا فضلة عنده تعالى من ضيافتنا فاستحسن ذلك منه المعترض فانظر في هذا النفس إن كنت منهم

(وصل في فصل استيعاب الأيام السبعة بالصيام)

[العبد الصالح يتجمل بكل يوم عند ربه]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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