الفتوحات المكية

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[لا يكلم اللّٰه خلقه إلا من وراء حجاب]

فكما أنه لا يكلم اللّٰه خلقه إلا من وراء حجاب و الحجاب عين الكلام كذلك لا تكلمه أنت و لا تذكر عنده نفسك و لا غيرك إلا من وراء حجاب لا بد من ذلك فإن المشاهدة للبهت و الخرس فلا بد للذاكر و إن كان الحق جليسه أن يكون أعمى و لا بد و عماه ذكره فالحق جليس غيب عند كل ذاكر فمن غلب عليه مشاهدة الخيال في حق ربه من قوله كأنك تراه و هو استحضار في خيال فمثل ذلك بجمع بين المشاهدة و الكلام فإن الجليس في تلك الحال مثلك لا من ﴿لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَيْءٌ﴾ [الشورى:11] و هذا كان حال الشهاب ابن أخي النجيب رحمه اللّٰه على ما نقل إلى الثقة عندي من قوله إن الإنسان يجمع بين المشاهدة و الكلام أين هذا الذوق من ذوق المحقق أبي العباس السياري من الرجال المذكورين في رسالة القشيري حين قال ما التذ عاقل بمشاهدة قط لأن مشاهدة الحق فناء و ليس فيها لذة أين هذا الذوق من ذوق الشهاب فافهم فإنه موضع غلط لأكابر المحققين من أهل اللّٰه فكيف بمن هو دونهم

[الذين هم فوق ما يقولون و الذين هم تحت ما يقولون]

و قد أخبرنا عمن رأيناه من أهل اللّٰه المنتمين إلى اللّٰه أنه يقول بذلك أعني مثل قول الشهاب فإن كان صاحب علم تام فيقوله على حد ما رسمناه و إن كان دون ذلك فإنما يقوله كما يقوله من لا علم له بالحقائق و لو قالها بحضوري كنت أفاوضه فيها حتى أعرف بأي لسان يقول ذلك فكنت أنسبه إلى ما قال على التعيين فاعلم أنه إن كان قال ذلك على مجرى التحقيق علمنا أنه فوق ما يقول و منهم من هو تحت ما يقول و الذين هم تحت ما يقولون طائفتان طائفة في غاية العلم بالله مما في وسع البشر أن يعلموه من اللّٰه و الطائفة الأخرى في غاية البعد و الحجاب عن اللّٰه و هم الذين ﴿يَعْلَمُونَ ظٰاهِراً مِنَ الْحَيٰاةِ الدُّنْيٰا﴾ [الروم:7] و هم الذين لا يرون شيئا فوق علم الرسوم فهم يشبهون الطبقة العالية في كونهم تحت ما يقولون كما أنهم شاركوهم في اسم العلم و انفصلوا عنهم بمن أغنى بالمعلوم أي بمن تعلق علمهم و هذا كله مدرك أهل أيام التشريق فإن أكلوا فيها فمن حيث إنها أيام أكل و شرب و ذكر و إن صاموا فيها فمن حيث إنها أيام ذكر اللّٰه فشغلهم الذكر عن الأكل و الشرب فامتناعهم عن الأكل امتناع حال لا امتناع عبادة

(وصل في فصل صيام يوم الفطر و الأضحى)

هذان اليومان محرم صومهما بحديث أبي هريرة و حديث أبي سعيد أما



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