الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

[من راعى اللّٰه في عمله كان هو لا غيره جزاءه]

لما كان الصوم حكما أضافه اللّٰه إليه و عرى الصائم عنه مع كونه أمره بالصيام فانبغى للصائم أن يكون مدة صومه ناظرا فيه إلى ربه حتى يصح كونه صائما لا يغفل عنه فإن الحق لا يضيفه إليه حتى يصح أنه صوم و لا يصح إلا بصيام العبد على الصورة التي شرع اللّٰه له فيه أن يأتي بها فإن لم يصمه على حد ما شرع له فما هو صائم و إذا لم يكن صائما فما ثم صوم يرده اللّٰه إليه فإن الصائم قد يحسب أنه صائم و قد فعل في صومه فعلا أوجب له ذلك الفعل أن يخرج عن صومه كالغيبة إذا وقعت منه و أمثالها فهو مفطر أي ليس بصائم و إن لم يأكل فإن كان لذلك الفعل كفارة و أتى بها فهو صائم فيحافظ الصائم على هذا فإن فيه إيثار الحق على نفسه فيجازيه على قدر المؤثر به و هو اللّٰه تعالى فمن راعى ربه عزَّ وجلَّ راعاه اللّٰه تعالى فما يكون جزاؤه إلا هو ﴿مَنْ وُجِدَ فِي رَحْلِهِ فَهُوَ جَزٰاؤُهُ﴾ [يوسف:75] و قد وجد في رحله فإن الحق في قلب عبده المؤمن الحاضر معه لا بد من ذلك و الصوم وجد عند اللّٰه فإنه له لما صح صوم الصائم طلب رحله فقيل له أخذه اللّٰه فكان اللّٰه جزاءه «فقال الصوم لي و أنا أجزي به»

[حديث خراش بن عبد اللّٰه في فساد الصوم]

حديث مروي في فساد الصوم «ذكر أبو أحمد بن عدي الجرجاني من حديث خراش بن عبد اللّٰه عن» «أنس عن النبي صلى اللّٰه عليه و سلم قال من تأمل خلق امرأة حتى يستبين له حجم عظامها من وراء ثيابها و هو صائم فقد أفطر» خراش هذا مجهول لأنه كان يحدث من صحيفة كانت عنده و هذا الحديث منها و الذي يرويها عنه ضعيف كذا ذكر شيخنا أبو محمد عبد الحق



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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